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प्रकरण ३ : रत्नत्रय
[१८५ जल के पूर्णरूप से पृथक् कर देने पर नाव का पानी की सतह पर आ जाना मोक्ष है।
भगवान बुद्ध ने भी इसी तथ्य का साक्षात्कार करके इसका ही चार आर्यसत्यों के रूप में उपदेश दिया है। चूंकि बौद्धदर्शन में कोई स्थायी चेतन व अचेतन पदार्थ स्वीकार नहीं किया गया है अतः उत्तराध्ययन में प्रतिपादित नौ तथ्यों को जिन पाँच भागों में विभक्त किया गया है उनमें से प्रथम भाग में गिनाए गए जीव और अजीव को छोड़कर शेष सात तथ्यों को ही उपर्युक्त क्रम से निम्नोक्त चार आर्य-सत्यों के रूप में विभक्त किया गया है : १
१. दु.ख सत्य-संसार में जन्म, जरा, मरण, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग आदि दुःख देखे जाते हैं । अतः दुःख सत्य है।
२. दुःख-कारण सत्य ( दु.ख-समृदय सत्य )-जब दुःख हैं तो दुःख के कारण भी अवश्य हैं।
३. दुःख-निरोध सत्य-यदि दुःख और दु:ख के कारण हैं तो कारण के नाश होने पर कार्यरूप दुःख का भी विनाश होना चाहिए। इस तरह दुःख-निरोध भी सत्य है । .. ४. दुःख-निरोधमार्ग सत्य-दुःखों को दूर करने का रास्ता भी है । अतः दुःख-निरोधमार्ग भी सत्य है ।
इस तरह चेतन-अचेतन द्रव्य हैं या नहीं, परमार्थ में सुख है या नहीं ? इसका कोई समुचित उत्तर न देकर भगवान् बुद्ध ने यह कहा कि उपर्युक्त चार बातें सत्य हैं । दुःख से छुटकारा चाहते हो तो इन चार आर्यसत्यों पर विश्वास करके दुःख-निरोध के मार्ग का अनुसरण करो। दुःख-निरोध के मार्ग में जिन उपायों को बौद्धदर्शन में बतलाया गया है वे ही उपाय प्रायः उत्तराध्ययन में भी हैं, परन्तु मुख्य अन्तर यह है कि जहाँ बौद्धदर्शन मुक्ति के लिए १. सत्यान्युक्तानि चत्वारि दुःखं समुदय स्तथा । निरोधो मार्ग एतेषां यथाभिसमयं क्रमः ।।
- अमिधर्मकोष ६.२.
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