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१८४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन की रचना के मूल उपकरणों को लिया जाता है तथा 'तत्त्व' शब्द से आध्यात्मिक रहस्य का भावात्मक विश्लेषण किया जाता है।' 'तत्त्व' शब्द के द्वारा प्रतिपाद्य अर्थ का ही विशेष व्याख्यान 'पदार्थ शब्द के द्वारा किया जाता है। पदार्थ को ही 'तथ्य' शब्द से कहा गया है। ग्रन्थ में इन नौ तथ्यों के विषय में एक नाव का दृष्टान्त भी दिया गया है :२ . एक नौका संसाररूपी समुद्र में तैर रही है जिसमें दो छिद्र हैं,.. उनमें से एक से गन्दा और दूसरे से साफ पानी आ रहा है। पानी के आते रहने से नाव अब डूबने ही वाली है कि नाव का मालिक उन दोनों छिद्रों को बन्द कर देता है जिनसे पानी अन्दर प्रवेश कर रहा था और फिर दोनों हाथों से उस भरे हुए पानी को उलीचकर निकालने लगता है। धीरे-धीरे वह नौका पानी से खाली हो जाती है और पानी की सतह पर आकर अभीष्ट स्थान को प्राप्त करा देती है। इस तरह इस दृष्टान्त में नौका शरीर स्थानापन्न (अजीव) है, नाविक जीव है, गन्दे और साफ पानी आने के दोनों छिद्र क्रमशः पाप और पुण्यरूप हैं, जल का नाव में प्रवेश करना आस्रव है, जल का नाव में एकत्रित होना बन्ध है, पानी आने के स्रोतों (छिद्रों) को बन्द करना संवर है, पानी को उलीचना निर्जरा है और १. तत्त्व शब्दो भावसामान्यवाची। कथम् ? तदिति सर्वनामपदम् ।
सर्वनाम च सामान्ये वर्तते । तस्य भावस्तत्वम् । तस्य कस्य ? योऽर्थों ययावस्थितस्तथा तस्य भवनमित्यर्थः। अर्यत इत्यर्थो निश्चीयत इत्यर्थः । तत्वेनार्थस्तत्त्वार्थः। अथवा भावेन भाववतोऽभिधानं, तदव्यतिरेकात् तत्त्वमेवार्थस्तत्त्वार्थः।।
-सर्वार्थसिद्धि १.२. २. जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गामिणी ।
जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिणी ॥
सरीरमाहु नावत्ति जीवो वच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो जं तरंति महेसिणो ॥
-उ० २३.७१-७३.
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