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१८६] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन आत्मा के अभाव (नैरात्म्य) की भावना पर जोर देता है। वहाँ । उत्तराध्ययन आत्मा के सद्भाव की भावना पर जोर देता है।२ ।
मुक्ति का साधन-रत्नत्रय : ___ उपयुक्त नौ तथ्यों में 'संवर' और 'निर्जरा' जो संसार . से निवृत्ति की व्याख्या करते हैं उनमें क्रमशः बतलाया गया है कि किस प्रकार आनेवाले नवीन कर्मों को रोका जा सकता है और किस प्रकार एकत्रित हुए पुराने कर्मों को नष्ट किया जा सकता है। इस तरह संवर और निर्जरा ये दोनों तत्त्व आचरणीय आचारशास्त्र या धर्मशास्त्र का प्रतिपादन करते हैं। परन्तु आचार (धर्म) की पूर्णता और सम्यकरूपता के लिए इन नौ तथ्यों का सच्चाज्ञान और उन पर दृढ़-विश्वास की भी आवश्यकता है। क्योंकि आचार के सम्यकपने के लिए आवश्यक है कि उसका सच्चाज्ञान हो और ज्ञान की प्राप्ति के लिए उस ज्ञान को प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा के साथ दढ़ विश्वास । ग्रन्थ में इसी कथन को पुष्ट करते हुए लिखा है-'सच्चे विश्वास (दर्शन) के बिना सच्चा ज्ञान नहीं होता, सच्चे ज्ञान के बिना सच्चा चारित्र नहीं होता, सच्चे
१. तस्मादनादिसन्तानतुल्य जातीयबीजिकां । उत्खातमूलाङ कुरुत सत्वदृष्टिमुमुक्षवः ।
-प्रमाणवार्तिक २.२५७-२५८.
यः पश्यत्यात्मानं तत्राहमिति शाश्वतः स्नेहः ।
आत्मनिसतिपरसंज्ञा स्वपरविभागात परिग्रहद्वेषो। . अनयो संप्रतिबद्धाः सर्वे दोषाः प्रजायन्ते ।।
-प्रमाणवार्तिक २.२१८-२२१. २. एवं लोए पलित्तम्मि जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि तुब्भेहि अणुमन्निओ।।
-उ० १६.२४. तथा देखिए-उ० १५.१,३,५,१५; १८.३०-३१,३३.४६ आदि ।
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