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________________ १५६ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन २. निद्रा - निद्रा १ - जिस कर्म के प्रभाव से जीव को गाढ़ निद्रा आए ( ऐसी निद्रा वाला व्यक्ति हलाने पर भी कठिनता से जागता है ), ३. प्रचला - जिस कर्म के प्रभाव से खड़े-खड़े या बैठे-बैठे भी कुछ-कुछ निद्रा आती रहे, ४. प्रचलाप्रचला - जिस कर्म के प्रभाव से चलते-फिरते भी नींद आ जाए, ५. स्त्यानगृद्धि - जिस कर्म के प्रभाव से दिन में अथवा रात्रि में सोते हुए ही स्वप्न में कार्यों को कर डाले, ६. चक्षुदर्शनावरण- चक्षु इन्द्रिय से होने वाले दर्शनगुण का प्रतिबन्धक, ७ अचक्षुर्दर्शनावरण - चक्षु से इतर इन्द्रियों के द्वारा होनेवाले दर्शनगुण में प्रतिबन्धक, ८. अवधिदर्शनावरण- इन्द्रि यादि के बिना रूपी अचेतन पदार्थों के विषय में होने वाले आत्मा के दर्शनगुण में प्रतिबन्धक और 8. केवलदर्शनावरण - इन्द्रियादि त्रिकालवर्ती सम्पूर्ण पदार्थो के युगपत् दर्शन में प्रतिबन्धक । ज्ञान के पूर्व की अवस्था दर्शन कहलाती है । यद्यपि दर्शनावरणीय कर्म के चार ही प्रमुख अवान्तर भेद हैं परन्तु निद्रादि के पाँच भेदों को मिला देने से नव भेद हो जाते हैं । निद्रादि के प्रमादरूप होने से उन्हें भी दर्शन में प्रतिबन्धक माना गया है । पाँच प्रकार की निद्राओं में स्त्यानगृद्धि निद्रा सबसे खराब है । 1 ३. वेदनीय कर्म - जिस कर्म के प्रभाव से सुख या दुःख की अनुभूति होती है। सुख और दुःखरूप अनुभूति होने के कारण ९. यद्यपि उत्तराध्ययन में 'निद्रानिद्रा' का उल्लेख 'प्रचला' के बाद किया गया है परन्तु उत्तरोत्तर निद्रा की तीव्रता की दृष्टि से मैंने प्रचला के पूर्व कथन किया है । तत्त्वार्थ सूत्र आदि जैन ग्रन्थों में भी निद्राओं का यही क्रम मिलता है: चक्षुरचक्षुरधिकेवलानां निद्रा निद्रानिद्रा- प्रचलाप्रचलाप्रचला - स्त्यानगृद्धयश्च । - त० सू० ८.७. २. याकोबी (से० बु० ई०, भाग-४५, पृ० १९३ ) ने ' प्रचला' का व्युत्पत्तिपरक अर्थ ( क्रिया - Activity) किया है । श्वेताम्बर - दिगम्बर परम्परागत अर्थ के लिए देखिए - कर्मप्रकृति, प्रस्तावना, पृ० २३. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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