SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन खोटे कार्य करता है तो पापकर्म के प्रभाव से नरकादि में जन्म लेता है। दुरात्मा के विषय में ग्रन्थ में कहा गया है कि वह कण्ठ का छेदन करने वाले शत्र की अपेक्षा भी अपना अधिक अनिष्ट करता है। इसका ज्ञान उसे तब होता है जब वह मृत्यु के समीप पहुँचकर पश्चात्ताप से दग्ध होता है।' यह अवश्य है कि पुण्यकर्म के प्रभाव से सांसारिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं परन्तु जन्म-मरण के प्रति दोनों (पाप-पुण्य) की कारणता समान है। मनोज्ञामनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष-बुद्धि-कर्मबन्धन क्यों होता है ? इसका कारण है- मनोज्ञ (प्रिय) वस्तु में राग (ममत्व-आसक्ति) और अमनोज्ञ (अप्रिय) वस्तु में द्वेष-बुद्धि का होना। जब जीव किसी वस्तु में राग या द्वेष करता है तो वह अपने राग-द्वेष के कारण दुःखों को प्राप्त करता है। इस तरह राग-द्वेष साक्षात् दुःख के कारण होकर भी कर्मबन्ध के कारण हैं क्योंकि रागद्वेष के कारण ही जीव हिंसा, झूठ, चोरी आदि पाप-क्रियाओं तथा दया, दान आदि १. न तं अरी कंठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा । से नाहिई मच्चु मुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणो॥ -उ० २०.४८ तथा देखिए-उ० ७.६. २. देखिए-पृ० १४१, पा० टि० २.; उ० ४.१२-१३; ८.२; २६.६२ ७१; ३०.१,४; ३१.३; ३२.६,१६,२५-३०, ३२-३३, ३८-३९, ४१,४६, ५.१, ५२,५६, ६४-६५,७२, ७७-७८, ८५, ६०-६१, ६८, १००-१०१. यहाँ पर कहीं राग-द्वेष को पृथक्-पृथक्, कहीं एक साथ, कहीं मोहादि के साथ कर्म का कारण बतलाया गया है। कहीं-कहीं राग-द्वेष को साक्षात् संसार या दुःख का भी हेतु बतलाया गया है। ३. रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे अलोयलोले समुवेइ मच्चं ।। जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि रूवं अवरज्झई से। -उ० ३२.२४.२५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy