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प्रकरण २ : संसार
[ १३३ मृत्यु के समीप चला जा रहा है।' सर्वार्थसिद्धि में रहनेवाले सर्वोच्च देव भी इस मृत्यु से छुटकारा नहीं प्राप्त कर सकते हैं । मृत्यु के उपरान्त सभी सांसारिक विषय-भोग यहीं छूट जाते हैं जिनका अन्य लोग उपभोग करते हैं। माता, पिता, भाई, बन्धु, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र आदि सभी लोग तभी तक साथ देते हैं जबतक मृत्यु नहीं आ जाती है क्योंकि मृत्यु के उपरान्त ये सभी सम्बंधीजन जो प्राणों से भी अधिक प्रिय थे दो-चार दिन शोक करके अन्य दातार के पीछे चल पड़ते हैं। इसीलिए इन विषय-भोगों और सम्बन्धीजनों के प्रति की गई आसक्ति को महामोह और भय को उत्पन्न करने वाली कहा गया है। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ में अनाथी मुनि के मुख से यह कहलाया गया है कि सभी प्रकार के साधनों से सम्पन्न राजागण भी अनाथ हैं क्योंकि मृत्यु या भयंकर
१. दुमपत्तये पंडयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए ।
एवं मणयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए । कुसग्गे जह ओसविंदुए थोवंचिट्ठइ लंबमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए ।
-उ० १०.१-२. अणिच्चे जीवलोगम्मि।
-उ० १८.१२. जीवियं चेव रूपं च विज्ज संपायचंचलं ।
-उ० १८.१३, तथा देखिए-उ० ४.१,९; ७.१०; १०.२१-२७; १३.२१,२६;
१४.२७-३२; १६.१३-१४. २. जहेह सोहो व मियं गहाय मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । - 'न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तम्मंसधरा भवन्ति ॥
-उ० १३.२२. तं एक्कगं तुच्छसरी रगं से चिईगयं दहिय उ पावगेण । भज्जा य पुत्तोवि य नायओ वा दायारमण्णं अणुसंकमन्ति ।।
-उ० १३.२५. तथा देखिए-उ० ४.१-४; ६.३-६; १८.१४-१७; आदि । ३. जहित्तु संगं च महाकिलेसं महन्तमोहं कसिणं भयाणगं । ।
-उ० २१.११.
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