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११२ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ८. दिक्कुमार, ६. वायुकुमार, और १०. स्तनितकुमार ।' इनका निवास अधोलोक की प्रथम पृथिवी का मध्यभाग माना गया है। .
व्यन्तर देव-इन्हें 'वाण व्यन्तर' तथा 'वनचारी' देव भी कहा गया है। क्योंकि ये देव तीनों लोकों में स्वेच्छापूर्वक भ्रमण करते हुए पर्वत, वृक्ष, वन आदि के विवरस्थलों में निवास करते हैं। इनकी प्रमुख आठ जातियां बतलाई गई हैं-१. पिशाच, २. भूत, ३. यक्ष, ४. राक्षस, ५ किन्नर, ६ किंपुरुष, ७. महोरग . और ८. गन्धर्व । ३ ये देव जिनके ऊपर प्रसन्न हो जाते हैं उनकी रक्षा, सेवा आदि भी करते हैं।४ ।। ___ ज्योतिषी देव-ज्योतिरूप होने से इन्हें ज्योतिषी देव कहते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, ग्रह और तारागण के भेद से ये मुख्यतः पाँच प्रकार के बतलाए गए हैं। इन देवों में से कुछ स्थिर हैं
और कुछ गतिमान । मनुष्य-क्षेत्र के ज्योतिषी देव गतिमान हैं। इनके गमन से ही घड़ी, घंटा आदि रूप से समय का ज्ञान होता है। मनुष्यक्षेत्र से बाहर के ज्योतिषी देव स्थिर है। इसीलिए कालद्रव्य को मनुष्य-क्षेत्रप्रमाण कहा गया है। सूर्य, चन्द्र आदि रूप जो ज्योतिषी देवों के भेद गिनाए गए हैं वे उनके निवास स्थान की अपेक्षा से हैं। १. असुरा नागसु वण्णा विज्ज अग्गी य आहिया । . दीवोदहिदिसा वाया थणिया भवणवासिणो ।।
-उ० ३६. २०५. २. पिसायभूया जक्खा य रक्खसा किन्नराकिंपुरिसा। महोरगा य गंधव्वा अट्टविहा वाणमंतरा ।।
-उ० ३६. २०६. तथा देखिए-पृ० १११, पा० टि० ३. ३. वही। ४. जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति ।
-उ० १२. ३२. ५. चंदासूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा । ठियावि चारिणो चेव पंचहा जोइसालया।
-उ०३६.२०७.
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