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________________ प्रकरण १ : द्रव्य-विचार [१०६ निवास करने की अपेक्षा से तत्तत् क्षेत्रों के भेदों के आधार पर मनुष्यों के भी ७३ भेद गिनाए गए हैं।' . इनकी निम्नतम आयु अन्तर्मुहूर्त तथा अधिकतम आयु ३ पल्योपम बतलाई गई है । एक जगह कुछ कम १०० वर्ष आयु बतलाई गई है जो वर्तमान की अपेक्षा से जनसामान्य की आयु मालूम पड़ती है। कायस्थिति ३ पल्यसहित पृथक-पूर्व-कोटि है। एक स्थल पर किसी भी व्यक्ति द्वारा सात या आठ बार लगातार मनुष्यपर्याय में जन्म लेने की सीमा बतलाई गई है।५ शेष क्षेत्र, अन्तमनि आदि का वर्णन चतुरिन्द्रिय जीवों की तरह ही बतलाया गया है। १. गब्भवतिया जे उ तिविहा ते वियाहिया । -उ० ३६.१६५. संमुच्छिमाण एसेव भेओ होई वियाहिओ। -उ० ३६.१६७. विशेष के लिए देखिए-पृ० ५७-६०, मध्यलोक का वर्णन । २. पालिओवमाइं तिन्नि य उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई मणुयाणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया । -उ० ३६ १६६. १. जाणि जीयन्ति दुम्मेहा ऊणे वाससयाउए । -उ० ७.१३. ४. पालिओवमाई तिनिउ उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडिपुहुत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहनिया ।। कायठिई मणुयाणं....................॥ -उ० ३६.२००-२०१. ५. पंचिदियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तट्ठभवगहणे समयं गोयम मा पमायए । -उ० १०.१३. यहाँ 'पचिदिय' से तात्पर्य पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों से है । क्योंकि देव और नारकी पुनः उसी काया में उत्पन्न नहीं होते हैं । ६. उ० ३६.१९७-१९८, २०१-२०२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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