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________________ १०४] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन नपंसक और उपपाद-जन्म वाले होते हैं।' अधोलोक में नीचेनीचे सात पृथिवियाँ होने से उनके ही नाम से सात नरक माने गए हैं और तत्तत नरकों में निवास करने वाले जीवों के भेद से नारकियों के भी सात भेद किए गए हैं। २ इनकी अधिकतम आयु क्रमशः ( ऊपर से नीचे के नरकों में ) १ सागर, ३ सागर, ७ सागर, १० सागर, १७ सागर, २२ सागर और ३३ सागर है । प्रथम नरक की कमसे कम आयु १० हजार वर्ष तथा अन्य नरकों में पूर्व-पूर्व के नरकों की उत्कृष्ट आयु ही आगे-आगे के नरकों में निम्नतम आयु है।४ नारकी जीव मरकर पुनः नरकों में उत्पन्न नहीं होते। अतः इनकी आयु (भवस्थिति) और कायस्थिति में कोई भेद नहीं है। अर्थात् नारकी जीवों की जो सामान्य आयु ( भवस्थिति ) बतलाई गई है उतनी ही उनकी कायस्थिति भी १. देवनारकाणामुपपादः । औपपादिकं वैक्रियिकम् । लब्धिप्रत्यय च । नारक सम्मूच्छिनो नपु सकानि । न देवाः । -त० सू० २ ३४, ४६-४७, ५०-५१. २. देखिए-पृ० ६१, पा० टि० १. ३. सागर या सागरोपम का अर्थ-सद्योत्पन्न बकरे के अभेद्य सूक्ष्मतम रोम-अंशों से भरे हुए एक योजन प्रमाण लम्बे और इतने ही चौड़े गड्ढे से यदि प्रति १०० वर्ष के बाद एक रोम-खण्ड निकाला जाए तो जितने समय में वह गड्ढा खाली होगा उसे पत्य, पल्योपम या पालि कहेंगे। ऐसे दश कोटाकोटि (करोड़ x करोड़) पल्यों का एक सागर या सागरोपम होता है। ४. सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया। पढमाए जहन्नेण दसवाससहस्सिया । तिण्णेव सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । तेत्तीससागराऊ उक्कोसेण दियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा । -उ० ३६.१६०-१६६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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