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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[१०३ कम से कम अन्तर्मुहूर्त और अधिक से अधिक संख्यात-काल है।' अन्तर्मान कम से कम अन्तर्मुहूर्त और अधिक से अधिक अनन्तकाल है।२ रूपादि के तारतम्य से इनके भी स्थावर जीवों की तरह हजारों भेद हो सकते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के सभी जीव तिर्यञ्च ही कहलाते हैं ।
४. पञ्चेन्द्रिय जीव-जो स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पाँचों इन्द्रियों से युक्त हैं वे पञ्चेन्द्रिय जीव कहलाते हैं। सभी जीवों में पञ्चेन्द्रिय जीवों की ही प्रधानता है। नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव गति के भेद से इन्हें चार भागों में विभक्त किया गया है। इनका विशेष परिचय निम्नोक्त है :
नारकी-जो पाप कर्मों के कारण दुःखों को झेलते हैं तथा अधोलोक में निवास करते हैं उन्हें नारकी जीव कहते हैं। ये सभी
एगूणपण्णहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया। तेइंदियआउठिई अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।।
-उ० ३६.१४१. छच्चेव य मासाऊ उक्कोसेण वियाहिया । चरिदियआउठिई अंतोमुहत्तं जहन्निया ।।
-उ० ३६.१५१. १. संखिज्जकाल मुक्कोसा अंतोमुहुत्त जहन्निया । बेइंदियकायठिई तं कायं तु अमुचओ॥
-उ० ३६.१३३. ..... तथा देखिए-उ० ३६.१४२, १५२; १०.१०-१२. . २. अणंतकालमुक्कोसं अंतोमुहत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं अंतरं च वियाहियं ॥
-उ० ३६.१३४. इसी तरह त्रीन्द्रिय आदि के लिए देखिए-९० ३६.१४३, १५३. । ३. देखिए-पृ० ६२, पा० टि० १.
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