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लालाजी लाहौर के प्रतिष्ठित नौलखा ओसवाल वंश के थे । उनका जन्म वि० सं० १९३४ में हुआ था । पिता का नाम लाला धर्मचन्द और माता का नाम भगवान देवी था। पांच वर्ष की आयु में मां का और चौदह वर्ष में पहुँचते-पहुँचते पिता का साया सिर से सदा के लिए उठ गया । परिवार का भार नन्हीं उमर में सिर आ पड़ा। आपने साबुन देशी के बनाने का धन्धा शुरू किया। इस व्यापार में बड़ी सफलता प्राप्त हुई । धर्माचरण में आप दृढ़ निष्ठावान रहे । आपके विशाल दिल ने किसी प्रार्थी को निराश नहीं लौटाया । ज्ञान, ध्यान, सेवा और पर सहायता के कामों में आप अपने धन का सदुपयोग करते रहे । जीवन नित्य-नियम से व्यतीत होता रहा ।
जब देश का विभाजन हुआ तो अन्य हिन्दू-सिक्खों की भांति लालाजी ने विस्तृत विशाल कारोबार को छोड़ पंजाब को जो पाकिस्तान के हिस्से आया था त्याग कर शेष बचे भारत में शरण ली। दिल्ली में आकर उन्होंने पहले का व्यवसाय ही आरम्भ किया । उनके परिवार ने उस व्यवसाय को खूब उन्नत किया है। नये कारखाने भी लगाये हैं । उनके डिपो पर साबुन खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है । वि० सं० २०१२ में आपका देहावसान हो गया था। उसके २१ दिन पूर्व ही उन्होंने सांसारिक मोह त्यागने का यत्न आरम्भ किया था और स्वात्म शुद्धि के लिए ध्यान में लग गये थे ।
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सेठ नाथालाल एम० पारख का, जिनकी पुण्यस्मृति में डा० जैन को रिसर्च स्कोलरशिप प्रदान की गई थी, संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
सौराष्ट्र राज्यान्तर्गत जेतपुर नामक स्थान में सन् १९०९ में श्री नाथालाल पारख का जन्म हुआ था। पांच वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का देहान्त हो गया । फलतः उनके लालनपालन का भार उनकी माता पर आ पड़ा तथा उन्हें १२ वर्ष की अवस्था में ही चावल की मिल में काम करने के लिए रंगून जाना पड़ा। वहां से लौटने पर वे बम्बई में एक बोतल व्यापारी की
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