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________________ ( ४ ) दुकान में लिपिक के रूप में नियुक्त हुए । इसके बाद उन्होंने स्वयं अपना व्यापार करने का निश्चय किया और घर-घर से खाली बोतलों का संग्रह करने का कार्य भी प्रारम्भ कर दिया। बाद में उनका एक प्रमुख जर्मन- कम्पनी से सम्पर्क हुआ और उन्होंने जर्मनलेबल भारत में बेचना प्रारम्भ किया। अपने अनुकूल अनुभव से प्रोत्साहित होकर उन्होंने छोटे लेबल उत्पादन करने का अपना एक छोटा-सा प्रेस शुरू किया जो अन्त में देश के एक बृहत्तम लेबल - उद्योग के रूप में परिणत हुआ । तब श्री पारखी सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने लगे और अपनी योग्यता के अनुसार उन्होंने दो दर्जन से अधिक सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं के ट्रस्टी, अध्यक्ष अथवा मंत्री पद को सुशोभित किया। वे जन्मभूमि- समूह के समाचार पत्रों के स्वामी सौराष्ट्र- ट्रस्ट के ट्रस्टी भी रहे । कांग्रेस से विशेष सम्बन्ध होने के कारण श्री पारखजी बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस कमिटी की स्मारिका समिति तथा वित्त समिति के अध्यक्ष बने । वे विधान परिषद् के सदस्य थे और पुन: १९६४ में निर्विरोध चुने गए। उनकी प्रशंसनीय सेवा से प्रभावित होकर सरकार ने उन्हें 'जस्टिस ऑफ पीस' की उपाधि प्रदान की, जिसके गौरव की रक्षा श्री पारखजी ने अन्त समय तक की । Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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