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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[९३ ____७. ज्ञानेन्द्रियाँ' -ज्ञान के स्रोत पाँच इन्द्रियाँ मानी जाती हैं। उनके क्रमशः नाम ये हैं-स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु, तथा कर्ण । इनमें से जो क्रमशः एक इन्द्रिय वाला है उसे एकेन्द्रिय, जो दो इन्द्रियों वाला है उसे द्वीन्द्रिय, जो तीन इन्द्रियों वाला है उसे श्रीन्द्रिय, जो चार इन्द्रियों वाला है उसे चतुरिन्द्रिय और जो पांचों इन्द्रियों वाला है उसे पञ्चेन्द्रिय जीव कहते हैं। इन इन्द्रियों की संख्या में वृद्धि क्रमशः ही होती है।
इस तरह ये कुछ मुख्य प्रकार हैं जिनके आधार पर जीवों का विभाजन किया गया है। शरीर में पाए जानेवाले रूपादि के तरतमभाव तथा स्थान-विशेष आदि के आधार से जीव के अनन्त भेद हो सकते हैं जिनकी ग्रन्थ में सूचना मात्र दी गई है। वस्तुतः ये सभी भेद शुद्ध जीव के नहीं हैं अपितु शरीरादि की उपाधि से विशिष्ट जीव (आत्मा) के हैं।
गमन करने की शक्ति की अपेक्षा जो त्रस और स्थावर के भेद से दो भेद किए गये थे उनमें से प्रथम स्थावर जीवों के भेदादि का विचार किया जाता है। स्थावर जीव :
चलने-फिरने की शक्ति से रहित जीव स्थावर कहलाते हैं। इसके प्रमुख तीन भेद किए गए हैं : १. पृथिवी शरीर १. उराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया। . वेइंदिया तेइंदिया चउरो पंचिदिया चेव ।।
-उ० ३६.१२६. • २. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ।
-उ० ३६.८३. तथा देखिए - उ० ३६.९१, १०५, ११६, १२५ आदि । ३. पुढवी आउजीवा य तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे ।।
-उ० ३६.६६. तथा देखिए-उ० ३६.६८.
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