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________________ अभिनिबोध Abhinibodh or Anumana. (Deduction, Reasoning by inference; e.g. any thing put in fire become sheated this thing is in Fire; therefore is must be heated. मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध इत्यादि अन्य पदार्थ नहीं हैं अर्थात् मतिज्ञान के ही नामान्तर हैं । मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम रूप अन्तरंग निमित्त से उत्पन्न हुए • उपयोग को विषय करने के कारण मतिज्ञान एक है तथापि कुछ विशेष कारणों से उसमें उपरोक्त भेद हो जाते हैं। 1. मति - " मननं मतिः " जो मनन किया जाता है उसे मति कहते हैं । मन और इन्द्रिय से वर्तमान काल के पदार्थों का ज्ञान होना मति है। 2. स्मृति - "स्मरणं स्मृति" स्मरण करना स्मृति है। पहले जाने हुए पदार्थ का वर्तमान में स्मरण आने को स्मृति कहते है । 3. संज्ञा - " सज्ञानं संज्ञा" वर्तमान में किसी वस्तु को देखकर यह वही है इस प्रकार स्मरण और प्रत्यक्ष के जोड़ रूप ज्ञान को संज्ञा या प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। 4. चिन्ता - किन्ही दो पदार्थों के कार्य-कारण आदि सम्बन्ध के ज्ञान को चिन्ता कहते हैं । इसको तर्क भी कहते हैं। जैसे- अग्नि के बिना धूम नहीं होता है, आत्मा के बिना शरीर व्यापार, वचन व्यापार नहीं हो सकते हैं, पुद्गल के बिना स्पर्श, रस, गंध, वर्ण नहीं हो सकते है इस प्रकार कार्य कारण सम्बन्ध का विचार करना 'चिन्ता' है। संक्षिप्ततः व्याप्ति के ज्ञान को चिन्ता कहते हैं । 5. अभिनिबोध - एक प्रत्यक्ष पदार्थ को देखकर उससे सम्बन्ध रखने वाले अप्रत्यक्ष का बोध - ज्ञान होना अभिनिबोध ( अनुमान) है। जैसे - पर्वत पर प्रत्यक्ष धूम को देखकर उससे सम्बन्ध रखने वाली अप्रत्यक्ष अग्नि का ज्ञान होना । 'इति' शब्द से प्रतिभा, बुद्धि, मेधा आदि को ग्रहण करना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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