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शेष सब ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है।
. अवधिज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान एवं केवलज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है। ___ जो ज्ञान परावलम्बन के बिना जानता है उसे प्रत्यक्षज्ञान कहते हैं। इस दृष्टि से केवलज्ञान ही पूर्ण (सकल) प्रत्यक्ष है। अवधिज्ञान एवं मन :पर्ययज्ञान क्षयोपशम से उत्पन्न होने के कारण तथा सीमा सहित होने के कारण परोक्ष होते हुए भी ये दोनों ज्ञान मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान के समान पूर्ण परन्तन्त्र नहीं हैं इसलिए इन दोनों ज्ञान को प्रत्यक्ष में ग्रहण किया गया है। तथापि केवलज्ञान के समान पूर्ण प्रत्यक्ष नहीं होने के कारण इसे देश प्रत्यक्ष भी कहते हैं। प्रत्यक्ष की परिभाषा कुन्दकुन्ददेव ने निम्न प्रकार से की है__जदि केवलेणं णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्खं॥
(58 प्रव.पृ. 134) जो मात्र जीव के द्वारा ही जाना जाता है वह ज्ञान वास्तव में प्रत्यक्ष
मतिज्ञान के दूसरे नाम मति: स्मृतिः संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्। (13) मति : Sensitive knowledge (connotes) the same things as : स्मृति (rememberance of a thing known before, but out of sight
.. now): संज्ञा also called प्रत्यभिज्ञान recognition (rememberance of a thing
known before when the thing itself or something similiar or markedly dissimilar to it, is present to the senses now):
Farell Chinta or Tarka induction (reasoning or argrument based
upon observation. If a thing is put in fire, its temperature would rise,)
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