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________________ सिद्धों की अन्य विशेषता तादात्म्यादुपयुक्तास् केवलज्ञानदर्शने । सम्यक्त्वसिद्धतावस्था हेत्वभावाच्च निःक्रियाः ।। 43॥ वे सिद्ध भगवान् तादात्म्यसम्बन्ध होने के कारण केवलज्ञान और केवलदर्शन के विषय में सदा उपयुक्त रहते हैं तथा सम्यक्त्व और सिद्धता अवस्था को प्राप्त हैं। हेतु का अभाव होने से वे निः क्रिया- क्रिया से रहित हैं। सिद्धों के सुख का वर्णन संसारविषयातीतं अव्याबाधमिति सिद्धानामव्ययं प्रोक्तं परमं Jain Education International सुखम् । परमर्षिभिः ||45|| सिद्धों का सुख संसार के विषयों से अतीत, अविनाशी, अव्याबाध तथा परमोत्कृष्ट है ऐसा परमऋषियों ने कहा हैं। शरीर रहित सिद्धों के सुख किस प्रकार हो सकता है ? (तत्त्वार्थसार) स्यादेतदशरीरस्य जन्तोर्नष्टाष्टकर्मणः । कथं लोके भवति मुक्तस्य सुखमित्युत्तंर श्रृणु ॥1461 चतुर्विहार्थेषु सुखशब्दः प्रयुज्यते । विषये वेदनाभावे विपाके मोक्ष एव 114711 सुखो वह्निः सुखो वायुर्विषयेष्विह कथ्यते । दुःखाभावे च पुरुषः सुखितोऽस्मीति भाषते ।।48 ।। पुण्यकर्मविपाकाच्च सुखमिष्टेन्द्रियार्थजम् । मोक्षे सुखमनुत्तमम् ॥49।। कर्मक्लेशविमोक्षाच्च यदि कोई यह प्रश्न करे कि शरीर रहित एवं अष्टकर्मों को नष्ट करने वाले मुक्तजीव के सुख कैसे हो सकता है तो उसका उत्तर यह है, सुनो। इस लोक में विषय, वेदना का अभाव, विपाक और मोक्ष इन चार अर्थों में सुख शब्द कहा जाता है। अग्नि सुख रूप है, वायु सुख रूप है, यहाँ विषय अर्थ में सुख शब्द कहा जाता है। दुःख का अभाव होने पर पुरुष कहता है कि मैं सुखी हूँ यहाँ वेदना के अभाव में सुखशब्द प्रयुक्त हुआ है। पुण्यकर्म के For Personal & Private Use Only 639 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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