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________________ होते हैं। ___अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः। (4) Otherwise there remain Arenapa perfect-right belief Fira perfect right knowledge दर्शन perfect conatian and सिद्धत्व the state of having accomplished all. केवलसम्यक्त्व, केवलज्ञान और सिद्धत्व भाव का अभाव नहीं होता। कर्म बन्धन से रहित होने के बाद जीव के सम्पूर्ण वैभाविक भाव नष्ट हो जाते है क्योंकि वैभाविक भाव के निमित्तभूत कारणों का अभाव हो जाता है। वैभाविक भाव के नष्ट होने पर स्वाभाविक भाव नष्ट नहीं होते परन्तु स्वाभाविक भाव पूर्ण शुद्ध रूप में प्रगट हो जाते हैं। तत्त्वार्थ सार में कहा भी है... ज्ञानावरणहानात्ते केवलज्ञानशालिनः। दर्शनावरणच्छेदादुद्यत्केवलदर्शना: ॥(37) वेदनीयसमुच्छेदादव्याबाधत्वमाश्रिताः । मोहनीयसमुच्छेदात्सम्यक्त्वमचलं श्रिताः॥(38) आयुः कर्मसमुच्छेदादवगाहनशालिनः। नामकर्मसमुच्छेदात्परमं सौक्ष्म्यमाश्रिताः॥(39) गोत्रकर्मसमुच्छेदात्सदाऽगौरवलाघवाः । अन्तरायसमुच्छेदादनन्तवीर्यामाश्रिताः ॥(40) वे सिद्ध भगवान ज्ञानावरण कर्म का क्षय होने से केवलज्ञान से सुशोभित रहते हैं, दर्शनावरण कर्म का क्षय होने से केवलदर्शन से सहित होते हैं, वेदनीय कर्म का क्षय होने से अव्यबाधत्वगुणको प्राप्त होते हैं, मोहनीय कर्म का विनाश होने से अविनाशी सम्यक्त्व को प्राप्त होते हैं, आयुकर्म का विच्छेद होने से अवगाहना को प्राप्त होते हैं, नामकर्मका उच्छेद होने से सूक्ष्मत्वगुण को प्राप्त हैं, गोत्रकर्मका विनाश होने से सदा अगुरुलघुगुण से सहित होते हैं और अन्तरायका नाश होने से अनन्त वीर्य को प्राप्त होते हैं। 638 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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