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________________ 6. The colouration. 7. Birth. . 8. The state of condition. ... संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपाद और स्थान के भेद से इन निर्ग्रन्थों का व्याख्यान करना चाहिये। (1) संयम :- पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील सामायिक और छेदोपस्थापना इन दो संयमों को धारण करते हैं अर्थात् इनके दो संयम होते हैं। कषायकुशील मुनि के सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसाम्पराय ये चार संयम होते हैं। निर्ग्रन्थ और स्नातक के एक यथाख्यात संयम ही होता है। (2) श्रुत की दृष्टि से :- पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील मुनि उत्कृष्ट से अभिन्न अक्षरदशपूर्व के धारी होते हैं। कषायकुशील और निर्ग्रन्थ उत्कृष्ट चौदह पूर्व के धारी होते हैं। जघन्य से पुलाक का श्रुत आचारवस्तु के ज्ञान तक सीमित है। बकुश, कुशील और निर्ग्रन्थों का जघन्य श्रुत आठ प्रवचनमातृकाओं (पाँच समिति और तीन गुप्ति) के ज्ञान तक है। स्नातक केवली है, अतः श्रुतातीत है। (3) प्रतिसेवना:- पाँच मूलगुण (अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत) तथा रात्रिभोजनत्याग रूप षष्ठ व्रत में से किसी की पर के दबाव से प्रतिसेवना (विराधना) करने वाला पुलाक मुनि होता है, अर्थात् पुलाक मुनि के पर के दबाव से पाँच महाव्रत और रात्रिभोजन त्याग व्रत की विराधना हो जाती है। वह प्रतिसेवना है। बकुश मुनि दो प्रकार के होते हैं-उपकरणबकुश और शरीर बकुश। उपकरणों (पिच्छिका, कमण्डलु, शास्त्र) में जिनका चित्त आसक्त है, जो अनेक प्रकार से भिन्न-भिन्न परिग्रह से युक्त हैं, जो सुन्दर बहुविशेष रूप से अलंकृत उपकरणों के आकाङ्क्षी हैं तथा जो उन उपकरणों का संस्कार किया करते हैं अथवा उनके उपकरण स्वच्छ, सुन्दर दीखते रहें ऐसा उनका संस्कार पसन्द करते हैं, ऐसे मुनि उपकरणबकुश कहलाते हैं। शरीर संस्कारसेवी (शरीर को स्वच्छ वा सुसज्जित रखने में तत्पर) भिक्षु शरीर बकुश कहलाता है। जो मूलगुणों का निर्दोष पालन करने वाला 625 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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