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नहीं होती, जो विशदरूप होने के कारण दोषरहित होता है तथा जिसमें पदार्थों के आकार विशेषरूप से प्रतिभाषित होते हैं, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं।
निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः। (7) Adhigama is attaind by (considering a principle, or any substance with reference to its निर्देश (Description, Definition), स्वामित्व (Possession, Inherence, साधन (Cause), अधिकरण (Place), स्थिति (Duration) and विधान (Division).
निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान से सम्यग्दर्शन आदि विषयों का ज्ञान होता है।
__ वस्तु स्वरूप का अन्वेषण, गवेषण, शोध एवं बोध करने के लिए इस सूत्र में वैज्ञानिक विभिन्न प्रणालियों का निर्देशन किया गया है। इस सूत्र में वस्तु स्वरूप को जानने के लिए जिस प्रणाली का निर्देशन किया गया है इसी प्रणाली का प्रयोग जैन धर्म के ज्ञान कोष स्वरूप षट्खण्डआगम एवं कषाय पाहुड़ में प्रायोगिक रूप में विस्तार से किया गया है। यहाँ पर इसका संक्षिप्त वर्णन कर रहे हैं
. (1) निर्देश :- वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश है। जैसे- “तत्त्वों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है" ऐसा कथन करना निर्देश है।
(2) स्वामित्व :- ‘स्वामित्व' का अर्थ आधिपत्य है। वस्तु के अधिकार को स्वामित्व कहते हैं। जैसे- सामान्य रूप से सम्यग्दर्शन के स्वामी संज्ञी पंचेन्द्रिय भव्य जीव है। . ..
(3) साधन :- वस्तु की उत्पत्ति के कारण को 'साधन' कहते हैं। साधन दो प्रकार का है। (1) बाह्य (2) अन्तरंग। बाह्य साधन निम्न प्रकार है-नारकियों के चौथे नरक से पहले तक अर्थात तीसरे नरक तक किन्हीं के जातिस्मरण, किन्हीं के धर्मश्रवण और किन्हीं के वेदनाभिभव से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है। चौथे से लेकर सातवें तक किन्हीं के जातिस्मरण, किन्हीं के वेदनाभिभव से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है।
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