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________________ जो ध्यान वितर्क और वीचार से रहित है तथा सूक्ष्मकाययोग के अवलम्बन से होता है वह सूक्ष्मक्रिया नाम का शुक्लध्यान है। वह समस्त पदार्थों को विषय करने वाला है । अत्यन्त सूक्ष्म काययोग में विद्यमान केवली भगवान् उस प्रकार के काययोग को रोकने के लिये इस शुक्लध्यान का ध्यान करते . हैं। अवितर्कमवीचारं सूक्ष्मकायावलम्बनम् । सूक्ष्मक्रियं भवेद् ध्यानं सर्वभावगतं हि तत् ॥ ( 51 ) काययोगेऽतिसूक्ष्मे तद् वर्तमानो हि केवली । शुक्लं ध्यायति संरोद्धं काययोगं तथाविधम् ।। (52) व्युपरतक्रिया शुक्लध्यान का लक्षण अवितर्कमवीचारं परं निरूद्धयोगं हि तत्पुना रूद्धयोगः सन् कुर्वन् कायत्रयासनम् । सर्वज्ञः परमं शुक्लं ध्यायत्यप्रतिपत्ति तत् ॥ ( 54 ) 614 ध्यानं जो वितर्क और वीचार से रहित है तथा जिसमें योगों का बिल्कुल निरोध हो चुका है वह व्युपरतक्रिया नाम का चौथा शुक्ल ध्यान है। यह ध्यान सर्वश्रेष्ठ शीलों के स्वामित्व को प्राप्त होता है अर्थात् यह अठारह हजार शील के भेदों से सहित होता है। जिसके सब योग रुक गये हैं तथा जो सत्ता में स्थित औदारिक, तैजस और कार्माण इन तीन शरीरों का त्याग कर रहे हैं, ऐसे सर्वज्ञ भगवान् इस उत्कृष्ट शुक्ल ध्यान का ध्यान करते है । यह ध्यान प्रतिपत्ति से रहित है ! Jain Education International व्युपरतक्रियम् । तच्छैलेश्यमपश्चिमम् ।। ( 53 ) pure concentration inhere in: These 4 kinds of The Ist quod fan in the saint with 3 vibratory activities of the soul throught mind, body and speech. शुक्लध्यान के आलम्बन त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् । (40) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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