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The 2nd एकत्त्व वितर्क विचार In the saint with only any one of the 3 vibratary activities of the soul.
The 3rd सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति In the संयोग केवली in the 13th stage गुणस्थान The yoga is by the body only.
The 4th व्युपरतक्रिया निवर्ति In the अयोग केवली in the 14th stage गुणस्थान There is no yoga or vibratory activity of mind, speech or body. वे चार ध्यान क्रम से तीन योग वाले, एक योग वाले, काययोग वाले और अयोग के होते हैं ।
पृथक्त्ववितर्कवीचार शुक्ल ध्यान तीनों योग के साथ हो सकता है। एकत्ववितर्क तीनों योगों में से किसी एक योग के साथ होता है, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती शुक्ल ध्यान काययोग वाले के होता है और अयोगी के व्युपरतक्रियानिवर्ती ध्यान होता है।
आदि के दो ध्यानों की विशेषता
एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे । ( 41 )
The first two kinds of pure concentration are attainable by one with scriptural knowledge and consist of meditation upon a part of the scriptural knowledge. In the concentration the part meditated upon may change in character or aspect.
पहले के दो ध्यान आश्रय वाले, सवितर्क और सवीचार होते हैं।
पूर्व के दो शुक्लध्यान श्रुतकेवली के द्वारा प्रारम्भ किये जाते हैं, अतः दोनों का आश्रय एक ही होने से एकाश्रय कहते हैं अर्थात् इन दोनों ध्यानों का एक ही प्रकार का सकल श्रुतकेवली स्वामी है । वितर्क और वीचार-वितर्क- वीचार, वितर्कवीचार सहित जो प्रवृत्ति करते हैं उसको सवितर्क वीचार कहते हैं ।
अवीचारं द्वितीयम् । (42)
But the 2nd kind of pure concentration is free from any such change. दूसरा ध्यान अवीचार है।
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