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पृथक्त्वशुक्लध्यान की विशेषता
श्रुतं यतो वितर्कः स्याद्यत: पूर्वार्थशिक्षितः। पृथक्त्वं ध्यायति ध्यानं सवितकं ततो हि तत्॥(46) अर्थव्यञ्जनयोगानां विचारः संक्रमो मतः। वीचारस्य हि सद्भावात् सवीचारमिदं भवेत्॥(47)
चूँकि वितर्क का अर्थ श्रुत है और चौदह पूर्वो में प्रतिपादित अर्थ की शिक्षा से युक्त मुनि इसका ध्यान करता है इसलिये यह ध्यान सवितर्क कहलाता है। अर्थ, शब्द और योगी का संक्रमण-परिवर्तन वीचार माना गया है। इस ध्यान में उक्त लक्षण वाला वीचार रहता है। इसलिये यह ध्यान सवीचार होता है। एकत्वशुक्लध्यान का लक्षण
द्रव्यमेके तथैकेन योगेनान्यतरेण च।
ध्यायति क्षीणमोहो यत्तदेकत्वमिदं भवेत् ॥(48)
क्षीणमोह अर्थात् बारहवें गुणस्थान में रहने वाला मुनि तीनों में से किसी एक योग के द्वारा एकद्रव्य का जो ध्यान करता है वह एकत्व नाम का दूसरा शुक्लध्यान है। एकत्वशुक्लध्यान की विशेषता
श्रुतं यतो वितर्कः स्याद्यत: पूर्वार्थशिक्षितः। एकत्वं ध्यायति ध्यानं सवितकं ततो हि तत्॥(49) अर्थव्यञ्जनयोगानां वीचारः संक्रमो मतः। वीचारस्य ह्यसद्भावादवीचारमिदं भवेत्॥(50)
चूँकि वितर्क का अर्थ श्रुत है और चौदहपूर्त में प्रतिपादित अर्थ को शिक्षा से युक्त मुनि एकत्व का ध्यान करता है इसलिये यह ध्यान सवितर्क होता है। अर्थ, शब्द और योगों का संक्रमण विचार माना गया है। ऐसे विचार 'का सद्भाव इस ध्यान में नहीं रहता इसलिये यह अविचार होता है। सूक्ष्मक्रियाशुक्ल ध्यान का लक्षण
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