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________________ and conduct of people can be removed. 3. fanfarer The fruition of the 8 Kinds of Karmas. 4. संस्थानविचय The nature and constitution of the universe. आज्ञा, उपाय, विपाक और संस्थान इनकी विचारणा के निमिन्त मन को एकाग्र करना धर्म्यध्यान हैं। (1) आज्ञाविचय :- उपदेश देनेवाले का अभाव होने से, स्वयं मन्दबुद्धि होने से, कर्मों का उदय होने से और पदार्थों के सूक्ष्म होने से तथा तत्त्व के समर्थन में हेतु और दृष्टान्त का अभाव होने पर सर्वज्ञप्रणीत आगम को प्रमाण करके 'यह इसी प्रकार है, क्योंकि जिन अन्यथावादी नहीं होते' इस प्रकार गहन पदार्थ के श्रद्धान द्वारा अर्थ का अवधारण करना आज्ञाविचय धर्म्यध्यान है । अथवा स्वयं पदार्थों के रहस्य को जानता है और दूसरों के प्रति उत करना चाहता है, इसलिए स्व- सिद्धान्त के अविरोध द्वारा तत्त्व का समर्थन करने के लिए उसके तो तर्क, नय और प्रमाण की योजनारूप निरन्तर चिन्तन होता है वह सर्वज्ञ की आज्ञा को प्रकाशित करने वाला होने से आज्ञाविचय कहा जाता है। ( 2 ) अपायविचय धर्म्यध्यान :- मिथ्यादृष्टि जीव जन्मान्धपुरुष के समान सर्वज्ञप्रणीत मार्ग से विमुख होते हैं, उन्हें सन्मार्ग का परिज्ञान न होने से वे मोक्षार्थो पुरुषों को दूर से ही त्याग देते हैं इस प्रकार सन्मार्ग के उपाय का चिन्तन करना अपायविचय धर्म्यध्यान हैं। अथवा, ये प्राणी मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र से कैसे दूर होंगे इस प्रकार निरन्तर चिन्तन करना अपायविचय धर्म्यध्यान हैं। ( 3 ). विपाकविचय धर्म्यध्यान :- ज्ञानावरणादि कर्मों के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भावनिमित्तक फल के अनुभव के प्रति उपयोग का होना विपाक विच धर्म्यध्यान हैं। 610 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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