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________________ से परिपूर्ण, ऐसे समस्त भोगों के स्वामित्व को प्राप्त किया है। मैंने पृथ्वी को भेद करके प्राणिसमूहों का धात करके, दुर्गम स्थानों (पर्वतादि) में प्रवेश करके, वन को लांघ करके और अभिमान में चूर रहने वाले शत्रुओं को सिर पर पाद प्रहार करके महान् स्वामित्व को प्राप्त किया है। जल, अग्नि, सर्प और विष के प्रयोग से तथा विश्वास उत्पन्न कराकर, फूट उत्पन्न कराकर एवं इसी प्रकार की अन्य भी कपट पूर्ण प्रवृत्तियों से समस्त शत्रु समूह को नष्ट कर देने से यह मेरा प्रबल प्रताप प्रगट है। इत्यादि प्रकार से मनुष्य जो विषयसंरक्षण से सम्बंधित विचार किया करते है उसे लोक के अद्वितीय अधिपति स्वरूप जिनेन्द्र देव ने संरक्षणानन्द जन्य रौद्र ध्यान कहा है। हिंसादि के आवेश और परिग्रह आदि के संरक्षण के कारण देशव्रती के भी रौद्र ध्यान होता है; कभी कभी। परन्तु देशव्रत का रौद्र ध्यान सम्यक् दर्शन के सामर्थ्य से (सम्यकदर्शन के साथ होने से) नरक गति आदि का कारण नहीं होता है। संयत के रौद्र ध्यान नहीं होता क्योंकि रौद्र भाव में संयम से च्युत हो जाते है। वे हिंसा आदि के आवेश में संयम रह नहीं सकता। क्योंकि जब आत्मा रौद्र ध्यान से युक्त होता है तब उसके संयम नहीं रह सकता। ये चारों में ही ध्यान प्रमादाधिष्ठान है अर्थात् प्रमाद भाव इनकी उत्पत्ति में कारण है। तथा नरकगति में जाना इस रौद्र ध्यान का फल है अर्थात् रौद्र ध्यानी नरक में जाता है। जैसे-अग्नि से संतप्त लोह पिण्ड चारों तरफ से जल खींचता है-उसी प्रकार इन आर्त रौद्र रूप अप्रशस्त ध्यानों से परिणत आत्मा चारों ओर से कर्म रूपी जल खींचता है/ कार्माण वर्गणाओं को ग्रहण करता है। . धर्मध्यान का स्वरूप व भेद . . आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम्। (36) धर्मध्यान Righteous concentration is of 4 Kinds i.e. contemplation of.. 1. आज्ञाविचय The principles taken on the faith of the scriptures as.being the teachings of the Arhats. 2. अपायविचय As to how the universal wrong belief knowledge 609 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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