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________________ शुक्लध्यान के स्वामी शुक्ले चाद्ये पूर्वा । (37) शुक्लध्यानं pure concentration is also fo 4 kinds. The first two kinds of pure concentration are only possible to saints possessed of a knowledge of the 14 पूर्व आदि के दो शुक्ल ध्यान पूर्वविद के होते हैं। आदि के दो शुक्लध्यान धारण करने का सामर्थ्य सकल श्रुत के धारी के है, अन्य के नहीं। इस बात की सूचना देने के लिए पूर्वविद् विशेषण का ग्रहण किया गया है। पूर्वकथित धर्मध्यान के समुच्यय के लिए 'च' शब्द का उल्लेख किया है कि पूर्वविद्र ( श्रुतकेवली) के आदि के पृथक् वितर्क वीचार और एकत्ववितर्क ये दो ध्यान होते है । और धर्मध्यान भी होता है। 1 धर्मध्यान श्रेणी-आरोहण के पहले होता है तथा श्रेण्यारोहणकाल में शुक्ल ध्यान होता है, यह बात व्याख्यान से ज्ञात हो जाती है। यहाँ पर जो वर्णन किया कि 'पूर्वविद्' अर्थात् 14 पूर्व या 9 पूर्व के ज्ञाता पहले के 2 शुक्ल ध्यान को ध्याता है यह कथन उत्कृष्ट रूप से है । परन्तु रूप से अष्ट प्रवचन मातृका के धारी मुनिश्वर भी शुक्ल ध्यान कर सकते हैं। जब मुनि महाराज ध्यानारुद होकर भाव विशुद्धि को प्राप्त करते है तब ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की विशेष वृद्धि होती है जिससे आगे जाकर पूर्वधारी बन जाते हैं क्योंकि जिस ध्यान के माध्यम से ज्ञानावरणीय क्षय होकर केवलज्ञान हो सकता है उस ध्यान से पूर्वविद् होना क्या आश्चर्य है। इस अपेक्षा से यहाँ कहा भी गया है कि आदि के 2 ध्यान सकल श्रुत के धारी 'श्रुत केवली को होते हैं । परे केवलिनः । (38) Jain Education International The last 2 kinds of man of perfect knowledge केवलि pure concentration are peculiar to the शेष के दो ध्यान केवली के होते हैं। For Personal & Private Use Only 611 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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