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हिंसा के उपकरणभूत विष शस्त्रादि का ग्रहण करना, दुष्ट जीवों के विषय में उपकार का भाव रखना तथा निर्दयतापूर्ण व्यवहार आदि ये प्राणियों के उस रौद्रध्यान के बाह्य चिन्ह है। इस हिंसानंद के कारण जीव दूसरों को कष्ट देते हैं, दूसरों पर घात करते हैं, दूसरे देश का आक्रमण करते हैं, निरीह पशु, पक्षी का संहार करते हैं, इससे उनको पाप बंध होता है, व दुर्गतियाँ प्राप्त होती हैं। इसके कारण विप्लव, आतंकवाद फैलता है। जीवों का हनन होता है, जिससे अनेक जीवों की जाति एवं प्रजाति का लोप होता है। इसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूचाल, भूकम्प होता है, रोग बढ़ता हैं। (2) मृषानंद- जिन पर दूसरों का श्रद्धान हो सके ऐसी अपनी बुद्धि के द्वारा कल्पना की हई युक्तियों के द्वारा दसरों को ठगने के लिये, झूठ बोलने के संकल्प का बार-बार चिन्तवन करना मृषानन्द नाम का दूसरा रौद्र ध्यान है।
असत्यकल्पनाजालकश्मलीकृतमानसः। चेष्टते यज्जनस्ताद्धि मृषारौद्रं प्रकीर्तितम्॥(14)
(ज्ञाना.पृ.428) जिस मनुष्य का हृदय असत्य कल्पनाओं के समूह से मोह को प्राप्त हुआ है वह जो कुछ भी प्रवृत्ति करता है उसे मृषारौद्र ध्यान कहा जाता है। ... पातयामि जनं मूढं व्यसनेऽनर्थसंकटे। . वाक्कौशल्यप्रयोगेण वाञ्छितार्थप्रसिद्धये ॥(19)
_मैं अभीष्ट प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए वचन चार्तुय का उपयोग • करके मूर्ख जन को अनर्थों से भयानक आपत्ति में डालता हूँ, ऐसे चिन्तन का नाम मृषानन्द रौद्र ध्यान है। इमान जडान्बोधविचारविच्युच्यतान्प्रतारयाम्यद्य वचोभिरुन्नतैः। अमी प्रवय॑न्ति मदीयकौशलादकार्यवर्येष्विति नात्र संशयः ॥(20)
मैं ज्ञान और विचार से रहित इन मूों को आज अपने उन्नत वचनों के द्वारा ठगता हूँ। ये मेरी चतुराई से महान् अकार्यों में प्रवृत्त होगें, इसमें सन्देह
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