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नहीं हैं, ऐसा विचार करना ही रौद्र ध्यान है। झूठ बोल कर के झूठ को सही मानना एवं उसमें आनंदित होना मृषा नंद नाम का आर्तध्यान है।
पुराण प्रसिद्ध सत्यघोष इसके लिए अच्छा उदाहरण है।
असत्य बोलने से असत्य बोलने वालों के ऊपर दूसरों का विश्वास नहीं होता, सत्य छिप जाता है, कलह युद्ध आदि होते हैं। असत्य के कारण न्यायालय में मुकदमे का निर्णय शीघ्र नहीं होता है एवं धन, सम्पत्ति, बादी होती है।
समय
(3) स्तेयानंद - बलपूर्वक या लोभ के वशवर्ती होकर दूसरे की धन, सम्पत्ति को हरण करने का बार-बार ध्यान करना स्तेयानंद रौद्रध्यान है। इस ध्यान के कारण जीव चोर बनता है, डकैत बनता है, जेब कटर बनता है। इस ध्यान
कारण ही शक्ति सम्पन्न व्यक्ति राजा, महाराजा दूसरे देश पर आक्रमण करके दूसरे देश की धन, सम्पत्ति के साथ-साथ देश को ही हड़प लेते हैं। जैसे सिकन्दर को भारतीय एक डाकू ने कहा था कि यदि मैं डाकू हूँ तो तुम महाडाकू हो क्योंकि मैं तो केवल हमारे देश की धन-सम्पत्ति को हड़पता हूँ परन्तु तुम तो दूसरे देश की सम्पत्ति व उस देश को ही हड़प लेते हो । ज्ञानार्णव में चौयनंदी का वर्णन निम्न प्रकार किया है।
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चौर्योपदेशबाहुल्यं यच्चर्येकरतं
चातुर्यं
जो चोरी विषयक उपदेश की अधिकता, चोरी के कार्य में 'चतुरता और उस चोरी के विषय में जो असाधारण रति होती है उसे चौयनंन्द रौद्रध्यान
माना जाता है।
चौर्यकर्मणि । चेतस्तच्चौर्यानन्दमिष्यते ।। (22)
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यच्चौर्याय
शरीरिणामहरहश्चिन्ता
समुत्पद्यते
कृत्वा चौर्यमपि प्रमोदमतुलं कुर्वन्ति यत्संततम् । चौर्येणापहृते परैः परधने यज्जायते संभ्रमस्तच्चौर्यप्रभवं वदन्ति निपुणा रौद्रं सुनिन्दास्पदम् ।। (23)
प्राणियों के लिए जो प्रतिदिन चोरी के निमित्त चिन्ता उत्पन्न होती है, को करके भी जो निरन्तर अनुपम आनन्द करते हैं, और जो दूसरो के
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