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enjoyments.
This is possible in the Avirata i.e. the first 4 and in deshavrata i.e.
the 5th stages.
हिंसा, असत्य, चोरी और विषयसंरक्षण के लिए सतत् चिन्ता करना रौद्रध्यान है । वह अविरत और देशविरत के होता है ।
हिंसा, अनृत आदि का निमित्त लेकर ध्यान की धारा चलती है, अतः हिंसादि का हेतु रूप से निर्देश किया है। अर्थात् उक्त लक्षण वाले हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह रौद्रध्यान के निमित्त होते हैं। अतः हिंसादि रौद्रध्यान की उत्पत्ति के कारण हैं।
(1) हिंसानंद - तीव्र कषाय के उदय से हिंसा में आनन्द मानना हिंसा नंद रौद्र ध्यान है । जैसे- विसमार्क-कंस, हिटलर, मुसोलिन, तैमूरलंग आदि तानाशाही राजा हिंसा करके आनंदित होते थे ।
हते निष्पीडिते ध्वस्ते स्वेन चान्येन
यो
दर्थिते ।
जन्तुजाते हर्षस्ताद्धिंसारौद्रमुच्यते । (4)
स्वयं अपने द्वारा अथवा अन्य के द्वारा प्राणिसमूह के मारे जाने पर, दबाये जाने पर, नष्ट किये जाने पर अथवा पीड़ित किये जाने पर जो हर्ष हुआ करता है उसे रौद्र ध्यान कहते हैं ।
संवास: सह निर्दयैरविरतं नैसर्गिकी क्रूरता । यत्स्याद्देहभृतां तदत्र गदितं रौद्रं प्रशान्ताशयैः ॥ (6) (ज्ञाना. पृ. 424 )
गगनवनधरित्रीचारिणां दलनदहनबन्धच्छेदघातेषु
(ज्ञाना. पृ.सं. 424 )
प्राणियों के जो हिंसा करने में कुशलता, पाप के उपदेश में अतिशय प्रवीणता, नास्तिक मत के प्रतिपादन में चतुरता, प्रतिदिन प्राण घात में अनुराग, दुष्टजनों के साथ सहवास तथा निरन्तर जो स्वाभाविक दुष्टता रहती है उसे यहाँ वीतराग महात्माओं ने रौद्र ध्यान कहा है।
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देहभाजां
यत्नम् ।
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