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के लिये दूसरे से पूछना पृच्छना है। 3. अनुप्रेक्षा-अधिगत (जाने हुए) अर्थ का मन के द्वारा अभ्यास करना अनुप्रेक्षा है। वस्तु के स्वरूप को जानकर संतप्त लोहपिण्ड के समान चित्त को तद्रूप बना लेना और बार-बार मन से उसका अभ्यास करना अनुप्रेक्षा नाम का स्वाध्याय
4. आम्नाय- विशुद्ध घोष से पाठ का परिवर्तन करना आम्नाय है। आचार पारगामी व्रती का लौकिक फल की अपेक्षा किये बिना द्रुत विलम्बित आदि उच्चारण दोषों से रहित होकर विशुद्ध पाठ का फेरना, घोष करना आम्नाय स्वाध्याय है, ऐसा कहा जाता है। 5. धर्मोपदेश-धर्मकथा आदि का अनुष्ठान करना धर्मोपदेश है। लौकिक ख्याति, लाभ आदि दृष्ट प्रयोजन के बिना, उन्मार्ग की निवृत्ति के लिए, संशय को . दूर करने के लिये तथा अपूर्व पदार्थ के प्रकाशन के लिये धर्मकथा आदि का अनुष्ठान कथन करना धर्मोपदेश नामक स्वाध्याय कहलाता है।
व्युत्सर्ग तप के 2 भेद
बाह्याभ्यन्तरोपध्योः। (26) व्युत्सर्ग Giving up attachment to worldly objects is of 2 kinds : 1. बाह्य उपाधि Of external things. 2. अभ्यन्तर उपाधि Of internal things as the passions etc.
बाह्य और अभ्यन्तर उपधिका त्याग यह दो प्रकार का व्युत्सर्ग है। व्युत्सर्जन (त्याग) को व्युत्सर्ग कहते हैं।
जो पदार्थ अन्य में बलाधान के लिये ग्रहण किये जाते हैं, अर्थात् जो किसी के सहकारी कारण होते हैं उनको बाह्य उपधि कहते हैं। (1) बाह्योपधि व्युत्सर्ग- अनुपात, बाह्य संयोग वस्तु का त्याग बाह्योपधि त्याग वा व्युत्सर्ग है। जो बाह्य पदार्थ आत्मा के द्वारा उपात्त नहीं है वा जो बाह्य पदार्थ आत्मा के साथ एकत्व को प्राप्त नहीं हुए हैं, उन पदार्थों का त्याग करना उसे बाह्योपधि व्युत्सर्ग जानना चाहिये, अर्थात् बाह्य पदार्थों के
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