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अथवा, संस्कारों से सुसंस्कृत असंयत सम्यग्दृष्टि को भी मनोज्ञ कहते हैं (क्योंकि • उससे प्रवचन की प्रभावना होती है ।)
इन आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, कुल, गण, संघ, साधु और मनोज्ञों पर व्याधि, परीषह, मिथ्यात्व आदि का उपद्रव होने पर उन उपद्रवों का प्रासुक औषधि, आहारपान, आश्रय, चौकी फलक, घास की चटाई आदि धर्मोपकरण (कमण्डलु, पिच्छिका, शास्त्रादि) के द्वारा प्रतीकार करना तथा मिथ्यात्व की ओर जाते हुए को सम्यक्त्वमार्ग में दृढ़ करना वैयावृत्त्य है। बाह्य प्रासुक औषधि आहार-पानादि द्रव्यों के अभाव में भी अपने शरीर से (हाथ से) खंकार, नाक आदि के भीतरी मल को साफ करना और उनके अनुकूल वातावरण बना देना, उनके अनुकूल अनुष्ठानादि करना वैयावृत्त्य कहा जाता है। समाधिधारण, विचिकित्साभाव, ( ग्लानि पर विजय ) प्रवचन वात्सल्य, सनाथता तथा दूसरों में सनाथवृत्ति जताने आदि के लिये वैयावृत्त्य करना आवश्यक है।
स्वाध्याय Study is of 5 Kinds:
1. वाचना Reading.
2. पृच्छना Questioning Inquiry on a doubtful point..
3. अनुप्रेक्षा Reflextion or meditation on what is read.
स्वाध्याय तप के 5 भेद वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा: । ( 25 )
4. आम्नाय Memorising and proper recitation.
5. धर्मोपदेश Lecturing or delivering sermons.
वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश यह पाँच प्रकार का स्वाध्याय हैं।
1. वाचना- निरपेक्ष भाव से तत्त्वार्थज्ञ के द्वारा पात्र के लिये जो निर्दोष ग्रन्थ वा ग्रन्थ के अर्थ या दोनों (ग्रन्थ और अक्षर इन ) का प्रतिपादन किया जाता है वह वाचना है।
2. पृच्छना - संशयच्छेद या निर्णय की पुष्टि के लिये ग्रन्थ, अर्थ या उभय
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