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__ अशुभ रूप मोहनीय कर्म के सर्वथा उपशम हो जाने से ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती जीवों के, और सर्वथा क्षीण हो जाने से बारहवें गुणस्थानवी जीवों के तथा तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान वाले जीवों के यथाख्यात संयम होता है।
(गो. जी. का., पृ. स. 216) निर्जरातत्त्व का वर्णन . अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा
. बाह्यं तपः। (19) तप austerities are, बाहय external and अभ्यन्तर internal. (1) अनशन Fasting. (2) अवमौदर्य्य Eating less than one's fill, than one has appetite for. (3) वृत्तिपरिसंख्यान Taking a mental vow to accept food from a house holder, only if a certain condition is fulfilled, without letting any one know about the vow. (4) रसपरित्याग Dailky renunciation of one or more of 6 kinds of delicacies. (5) विविक्तशय्यासन Sitting and sleeping in lonely place, devoid of animate beings. (6) कायक्ले श Mortification of the body, so long as the mind is not disturbed. अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश यह छ प्रकार का बाह्य तप है। (1) अनशन- लौकिक सुख, मंत्रसाधनादि दृष्टफल की अपेक्षा बिना संयम की सिद्धि, इन्द्रिय विषय सम्बन्धी राग के उच्छेद, कर्मों का विनाश, ध्यान की सिद्धि और आगम ज्ञान की प्राप्ति के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास (अनशन) कहलाता है।
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