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के द्वारा देखे गये पदार्थों के विषय में रूचि होती वह यहाँ परमावगाढ़सम्यग्दर्शन इस नाम से प्रसिद्ध है।
तत्त्वों के नाम जीवाजीवामृवबन्धसंवनिर्जरा मोक्षास्तत्त्वम्। (4) The (तत्त्व) Principles (are) जीव soul अजीव non soul आम्रव inflow (of Karmic matter into the soul) ofre bondage (of soul by Karmic Matter], संवर stopgae [of inflow of Karmic matter into the soul), निर्जरा shedding (of Karmic Matter by the soul] (and) ATAT Liberation (of soul from Matter]. - जीव, अजीव, आम्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व है।
विश्व सत् स्वरूप है। उस सत् के दो भेद हैं। (1) जीव (2) अजीव।' अजीव के पाँच भेद हैं (1) पुद्गल (2) धर्म (3) अधर्म (4) आकाश (5) काल।
यहाँ पर मोक्ष मार्ग का वर्णन होने के कारण (1) जीव एवं (2) अजीव (पुद्गल, अर्थात् कार्माण वर्गणा) तथा इनकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन इस सूत्र में किया गया है। जैसे-जीव एवं अजीव (पुद्गल) दो मौलिक द्रव्य है। जीव में पुद्गल का प्रवेश होना आस्रव है। तथा इस आम्रव से आगत पुद्गल का एक क्षेत्रांवगाही होकर मिल जाना बंध है। आते हुए (आम्रव) कर्म परमाणुओं का रूक जाना संवर है। जीव के साथ बंधे हुए कर्मों का आंशिक रूप से. जीव से पृथक् (अलग) हो जाना निर्जरा है। समस्त कर्मों का जीव से पूर्ण रूप से पृथक् हो जाना मोक्ष है। ___उपरोक्त सात तत्त्व में (1) पुण्य (2) पाप मिला देने से नव पदार्थ हो जाते हैं। गोम्मट्टसार जीवकाण्ड में कहा है
णव य पदत्था जीवाजीवा ताणं च पुण्णपावदुर्ग। आसवसंवरणिज्जरबंधा मोक्खो य होंति ति॥(621)
(गो.जी) मूल में जीव और अजीव ये दो पदार्थ हैं, दोनों ही के पुण्य और पाप
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