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आदि वस्तुएँ। इन सब उपकरणों को प्रयत्न पूर्वक अर्थात् उपयोग स्थिर करके सावधानी पूर्वक ग्रहण करना तथा देख, शोधकर ही रखना यह आदान निक्षेपण समिति है। यहाँ गाथा में 'उपधि' शब्द में द्वितीया विभक्ति है किन्तु प्राकृत व्याकरण के बल से यहाँ पर षष्ठी विभक्ति का अर्थ लेना चाहिए। तात्पर्य यह हुआ कि ज्ञानोपकरण, संयमोपकरण, शौचोपकरण तथा अन्य भी उपधि (वस्तुओं) का सावधानी पूर्वक पिच्छिका से प्रतिलेखन करके जो उठाना और धरना है वह आदाननिक्षेपण समिति है। (5) प्रतिष्ठापन समिति
एगते अन्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे।
उच्चारादिच्चाओ पदिठावणिया हवे समिदि॥(15)
एकान्त, जीव जन्तु रहित, दूर स्थित, मर्यादित, विस्तीर्ण, और विरोध रहित स्थान में मल मूत्रादि का त्याग करना प्रतिष्ठापना समिति है।
जहाँ पर असंयत जनों का गमनागमन नहीं है, ऐसे विजन स्थान को एकान्त कहते हैं। हरितकाय और त्रसकाय आदि से रहित जले हुये अथवा जले के समान ऐसे स्थण्डिल-खुले मैदान को अचित्त कहा है। ग्राम आदि से दूर स्थान को यहाँ दूर शब्द से सूचित किया है। संवृत्त-मर्यादा सहित स्थान अर्थात् जहाँ लोगों की दृष्टि नहीं पड़ सकती ऐसे स्थान को गूढ़ कहते हैं। विस्तीर्ण या विलादि से रहित स्थान विशाल कहा गया है और जहाँ पर लोगों का विरोध नहीं है वह अविरूद्ध स्थान है। ऐसे स्थान में शरीर के मल मूत्रादि का त्याग करना प्रतिष्ठापना नाम की समिति है। तात्पर्य यह हुआ कि एकान्त, अचित्त, दूर, गूढ, विशाल और विरोध रहित प्रदेशों में सावधानी पूर्वक जो मल आदि का त्याग करना है वह मल-मूत्र विसर्जन के रूप में प्रतिष्ठापन समिति होती है। ये समितियाँ पर्यावरण-शुद्ध के लिये कारण भूत भी हैं।
दश धर्म उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।
Suprime
forbearance,
modesty,
straigtforwardness,
purity,
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