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________________ (3) एषणासमिति छादालदोससुद्धं कारणजुत्तं विसुद्धणवकोडी। सीदादीसमभुत्ती परितुद्धा एसणासमिदि॥(23) छयालीस दोषों से रहित शुद्ध, कारण से सहित, नव-कोटि से विशुद्ध और शीत-उष्ण आदि में समान भाव से भोजन करना यह सम्पूर्णतया निर्दोष एषणा समिति है। उद्गम, उत्पादन, एषणा आदि छयालीस दोषों से शुद्ध आहार निर्दोष कहलाता है। असाता के उदय से उत्पन्न हुई भूख के प्रतीकार हेतु और वैयावृत्य आदि के निमित्त किया गया आहार कारण युक्त होता है। मन, वचन, काय को कृत, कारित-अनुमोदना से गुणित करने पर नव होते हैं। इन नव-कोटि विकल्पों से रहित आहार नव-कोटि-विशुद्ध है। ठण्डा, गर्म, लवण से सरस या विरस अथवा रूक्ष आदि भोजन में समान भाव अर्थात् शीत उष्ण आदि भोज्य वस्तुओं में राग द्वेष रहित होना, इस प्रकार सब तरफ से निर्मल निर्दोष आहार ग्रहण करना ऐषणा समिति होती है। तात्पर्य यह है कि छियालीस दोष रहित जो आहार ग्रहण का है जो कि कारण सहित है और मन-वचन-काय पूर्वक कृत कारित अनुमोदना से रहित तथा शीतादि में समता भावरूप है, वह साधु के निर्मल एषणा समिति होती है। (4) आदान-निक्षेपण समिति णाणुवहि संजमवहिं सउच्वहिं अण्णमप्पमुवहिं वा। पयदं . गहणिक्खेवोसमिदि आदाणणिक्खेवा।(34) . . ' ज्ञान का उपकरण, संयम का उपकरण, शौच का उपकरण अथवा अन्य भी उपकरण को प्रयत्न पूर्वक ग्रहण करना और रखना आदान निक्षेपण समिति है। ज्ञान-श्रुतज्ञान के, उपधि-उपकरण अर्थात् ज्ञान के निमित्त पुस्तक आदि ज्ञानोपधि हैं। पापक्रिया से निवृत्ति लक्षण वाले संयम के उपकरण अर्थात् प्राणियों की दया के निमित्त पिच्छिका आदि संयमोपधि हैं। मल आदि के दूर करने के उपकरण अर्थात् मल मूत्रादि प्रक्षालन के निमित्त कमण्डलु आदि द्रव्य शौचोपधि हैं। अन्य भी उपधि का अर्थ है संस्तर आदि उपकरण। अर्थात् घास, पाटा, 531 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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