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निर्जरा और संवर का कारण
तपसा निर्जरा च। (3) By penance (austerity) dissociation also. By austerities is caused shedding of Karmic matter and (also stoppage of inflow). तप से संवर और निर्जरा होती है।
यद्यपि तप दस धर्मों में अन्तर्भूत है फिर भी विशेष रूप से निर्जरा का कारण बताने के लिए अर्थात् तप भी निर्जरा का कारण है, इस बात को रूपायित करने के लिए तप का पृथक् ग्रहण किया गया है।
___ अथवा, सर्व संवर के हेतुओं में तप ही प्रधान हेतु है इसका ज्ञान कराने के लिए तप को पृथक् ग्रहण किया गया है।
___संवरनिमित्त के समुच्चय के लिये 'च' शब्द का प्रयोग किया है। 'च' शब्द तप संवर का हेतु भी होता है। इस संवरहेतुता का समुच्चय करता है, क्योंकि तप के द्वारा नूतन कर्म बन्ध रूककर पूर्वोपार्जित कर्मों का क्षय भी होता है। अत: तप अविपाक निर्जरा का कारण है। अर्थात् तप से अविपाक निर्जरा होती है इस प्रकार तप के जातीयत्व होने से ध्यानों के भी निर्जरा का कारणत्व प्रसिद्ध है। प्रश्न- तप निर्जरा का कारण नहीं है, क्योंकि तप को तो देवेन्द्रादि के अभ्युदय
स्थान की प्राप्ति का कारण कहा है ? उत्तर- ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि एक ही कारण से अनेक कार्य होते
हैं अर्थात् एक ही कारण से अनेक कार्यों का आरम्भ-प्रारम्भ देखा जाता है। जैसे, एक ही अग्नि पाक, विक्लेदन और भस्म करना आदि अनेक कार्य करती है वैसे ही तप अभ्युदय का विधान और कर्मों का क्षय करता है, इसमें क्या विरोध है ? अर्थात् तप से सांसारिक अभ्युदय
और मुक्ति दोनों प्राप्त होते हैं, इसमें कोई विरोध नही है।
किसान की खेती के समान गौण और प्रधानता से फल की प्राप्ति होती है अथवा जैसे किसान मुख्य रूप से धान्य के लिए खेती करता है, गौण
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