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________________ नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति आठ मुहूत है। यहाँ पर भी सूक्ष्म साम्पराय इस वाक्यविशेष का सम्बन्ध करना चाहिये। 'मुहूर्ता' और 'अपरास्थिति' इनका भी अनुवर्तन करना आवश्यक है, अत: इस सूत्र का अर्थ हुआ नाम और गोत्र की आठ मुहूर्त प्रमाण जघन्य स्थिति का बंध सूक्ष्म साम्यपराय नामक दसवें गुणस्थान में होता है। शेष पाँच कर्मों की जघन्य स्थिति शेषाणामन्तर्मुहूर्ता। (20) Of all the rest the minimum is one अतमुहूत which ranges from 1 समय and one 3710ft Avali at the lowest to 48 miniutes - 1 HH4 samaya. शेष पांच कर्मो की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है। __ 'अपरा' इसका प्रकरण से अनुवर्तन करना चाहिये। दर्शनावरण, ज्ञानवरण, और अन्तराय की जघन्य स्थिति का बंध सूक्ष्म साम्यपराय गुणस्थान में है। मोहनीय का जघन्य स्थिति बन्ध अनिवृत्ति बादर साम्यपराय नामक नवम गुणस्थान में है और आयु कर्म का जघन्य स्थिति बंध संख्यात वर्ष की आयु वाले (कर्मभूमिया) तिर्यंच और मनुष्यों में होता है। अर्थात् अन्तर्मुहूर्त आयु वाले कर्मभूमियामनुष्य और तिर्यंच हो सकते हैं। अनुभव का लक्षण विपाकोऽनुभवः। (21) अनुभव is the maturing and fruition of karmas. विपाक अर्थात् विविध प्रकार के फल देने की शक्ति पड़ना ही अनुभव है। नाना प्रकार के विशिष्ट पाक का नाम विपाक है। अनुग्रह और उपघात करने वाली ज्ञानावरण आदि कर्मप्रकृतियों के पूर्वास्त्रव के कारण तीव्र, मन्द भाव निमित्तक विशिष्ट पाक को विपाक कहते हैं। अथवा द्रव्य, क्षेत्र काल, भव और भाव लक्षण निमित्त भेद जनित विशिष्ट पाक को विपाक कहते हैं। यही विपाक अनुभव कहा जाता है। शुभ परिणामों की प्रकर्षता में शुभ कर्मप्रकृतियों का उत्कृष्ट और कर्मप्रकृतियों का निकृष्ट अनुभाग बंध होता है तथा अशुभ परिणामों की प्रकर्षता में अशुभ कर्मप्रकृतियों का उत्कृष्ट और शुभ कर्मप्रकृतियों का निकृष्ट अनुभाग बन्ध होता है। वही अनुभाग अर्थात् कर्मों के फल विपाक 509 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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