________________
से दो भाग प्रमाण है। संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। एकेन्द्रिय अपर्याप्तक की पल्य के असंख्यातवें भाग कम 2/7 सागर प्रमाण है । दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के पल्योपम के संख्यातवें भाग से कम स्वपर्याप्तक. की उत्कृष्ट स्थिति ही, इनकी उत्कृष्ट स्थिति समझनी चाहिये ।
The maximum duration of आयु Ayu Age-karma is 33 सागर Sagars.. आयु की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम प्रमाण है। पुन: 'सागरोपम' शब्द का ग्रहण कोड़ाकोड़ी की निवृति के लिये है । अर्थात् सागरोपम का प्रकरण होने पर भी सूत्र में पुनः सागरोपम का ग्रहण कोड़ाकोड़ी सागर की व्यावृत्ति (निराकरण) के लिये है । उत्कृष्ट स्थिति का अनुवर्तन करना चाहिये, अर्थात् 'परा' शब्द का ग्रहण प्रकरण से करना चाहिये । संज्ञी पर्याप्तक के आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागर प्रमाण है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक उत्कृष्ट आयु पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है तथा शेष जीवों की उत्कृष्ट आयु कोटि पूर्व प्रमाण है।
वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति
अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य । ( 18 )
The minimum duration of वेदनीय feeling karma is 12 मुहूत = 12 x 48 मिनट minutues.
वेदनीय की उत्कृष्ट स्थिति बारह मुहूर्त है।
सूक्ष्म साम्यपराय नामक दसवें गुणस्थान में वेदनीय की जघन्य स्थिति 12 मुहूर्त्त प्रमाण है। अर्थात् वेदनीय कर्म का जघन्य स्थितिबन्ध साम्यराय गुणस्थान
होता है।
आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः । ( 17 )
नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति नामगोत्रयोष्टौ । (19)
That of नाम Body-making and Gotra गोत्र Family-determining is 8 मुर्हत
muhurtas.
508
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org