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________________ अन्तरायकर्म के भेद दानलाभभोगोपभोगवीर्यणाम्। (13) अन्तराय Obstructive karma is of 5 kinds as it obstruts. 1. दानान्तराय Charity 2. लाभान्तराय Gain 3. भोगान्तराय Enjoyment of consumable things. 4.उपभोगान्तराय Enjoyment of non-consumable things. 5. वीर्यान्तराय Exercise of one's capacities power. दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ऐसे अन्तराय के पाँच भेद हैं। (1) दानान्तराय :- दानादि परिणाम के व्याघात का कारण होने से दानान्तराय आदि व्यपदेश होते हैं। जिसके उदय से देने की इच्छा होने पर भी दे नहीं सकता, दानान्तराय है। (2) लाभान्तराय :- लाभ की इच्छा होने पर भी लाभ नहीं हो पाता है, वह लाभान्तराय है। (3) भोगान्तराय :- जिसके उदय से भोगने की इच्छा होने पर भी भोग नहीं कर सकता वह भोगान्तराय कर्म है। (4) उपभोगान्तराय :- उपभोग की इच्छा होने पर भी जिसके उदय से वस्तु का उपभोग कर नहीं सकता, वह उपभोगान्तराय है। (5) वीर्यान्तराय :- कार्य करने का उत्साह होते हुए भी जिसके उदय से निरूत्साहित हो जाता है, वह वीर्यान्तराय कर्म है। - ये दानान्तराय आदि पांच अन्तराय कर्म के भेद हैं। प्रश्न :- भोग और उपभोग दोनों ही सुखानुभव में निमित्त है अत: इन दोनों ... में अविशेषता होने से अभेदत्व (भेद नहीं) है? उत्तर :- यद्यपि भोग और उपभोग दोनों सुखानुभव में निमित्त हैं तथापि एक बार भोगने में आने वाली गन्ध, माला, स्नान, अन्न-पानादि वस्तुओं में भोग व्यपदेश (संज्ञा) होता है (भोग है, ऐसा व्यवहार होता है) और शय्या, आसन, स्त्री, हाथी, घोड़ा, रथ आदि बार-बार भोगने में आने वाली वस्तुओं में उपभोग-व्यपदेश होता है। इस प्रकार आदि कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की संख्या कहीं है। फलविशेष की अपेक्षा 505 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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