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ज्ञानावरण और नामकर्म की उत्तर प्रकृत्तियाँ असंख्यात भी होती है।
स्थितिबन्ध का वर्णन आदितस्तिसृणामन्तरायस्यचत्रिंशत्सागरापमकोटीकोट्यः
परास्थितिः। (14) The maximum duration of the 3 form the first, 'Farkuffe knowledge obsucuring, दर्शनावरणीय conation-obscuring and वेदनीय feeling karmas and of 377r obstructive-karmas is 30 crore X crore APK sagaras.
आदि की तीन प्रकृतियाँ अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण और वेदनीय तथा अन्तराय इन चार की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटि-कोटि सागरोपम है। यह उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के हैं। अन्य एकेन्द्रिय आदि के ज्ञानावरणं आदि का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध आगम से जानना चाहिये। जैसे-एकेन्द्रिय पर्याप्त के ज्ञानावरण आदि का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध 3/7 सागर (एक सागर के सात भागों में से तीन भाग) प्रमाण हैं। द्वीन्द्रिय पर्याप्तक जीव के उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागर के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण हैं। तीन इन्द्रिय पर्याप्तक के पचार सागर के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण हैं। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक के सौ सागर के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के एक हजार सागर के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति हैं। संज्ञी पंचेन्द्रियं पर्याप्तक के अन्त: कोटाकोटि सागर उत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के पल्योपम के असंख्यात भाग कम स्वपर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण हैं। इसी प्रकार दो इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण अपनी-अपनी पर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति में से पल्योपम का असंख्यातवा भाग कम हैं।
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति
सप्ततिर्मोहनीयस्य। (15) The maximum duration of HE-I Deluding karma is 70 (crore X crore sagars).
मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटा कोटी सागरोपम है। सागरोपमकोटीकोटय: परास्थितिः इसका अनुवर्तन ऊपर के सूत्र के करना चाहिये।
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