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उग्रवंश, कुरूवंश, हरिवंश और ज्ञानी आदि विशेष कुल में जन्म होता है, वह उच्च गोत्र है।
( 2 ) नीच गोत्र निन्दनीय कुल में जन्म होना नीच गोत्र है । जिस कर्म के उदय से निन्दनीय, दरिद्री, अप्रसिद्ध, दुःखित, परम्परा से नीच आचरण. करने वाले दुःखाकुल और हीनकुल में प्राणियों का जन्म होता है वह नीच गोत्र है, उसे नीच गोत्र समझना चाहिये ।
संताणकमेण्गयजीवायरणस्स गोदमिदि
कुलकी परिपाटी के क्रम से चला आया जो जीव का आचरण उसकी गोत्र संज्ञा है । अर्थात् उसे गोत्र कहते हैं । उस कुलपरम्परा में ऊँचा (उत्तम) आचारण हो तो उसे उच्च गोत्र कहते हैं, जो निद्य आचरण हो तो तो वह नीचगोत्र कहा जाता है। जैसे एक कहावत है कि- शियाल का एक बच्चा बचपन से सिंहिनी ने पाला । वह सिंह के बच्चों के साथ ही खेला करता था। एक दिन खेलते हुए वे सब बच्चे किसी जंगल में गये। वहाँ उन्होंने हाथियों का समूह देखा। देखकर जो सिंहिनी के बच्चे थे वे तो हाथी के सामने हुए लेकिन वह शियाल जिसमें कि, अपने कुल का डरपोकपने का संस्कार था हाथी को देख भागने लगा। तब वे सिंह के बच्चे भी अपना बड़ा भाई समझ उसके साथ पीछे लौटकर माता के पास आये, और उस शियाल की शिकायत की कि हमको शिकार से इसने रोका। तब सिंहिनी ने उस शियाल के बच्चे से एक श्लोक कहा, जिसका मतलब यह है कि, अब बेटा ! तू यहाँ से भाग जा, नहीं तो तेरी जान नहीं बचेगी।
शूरोसि कृत - विद्योसि दर्शनीयोसि यस्मिन् कुले त्वमुत्पन्नो गजस्तत्र न हन्यते ॥ ( 1 )
पुत्रक ।
सण्णा । उच्चं णीचं चरणं उच्चं णीचं हवे गोदं ॥ ( 13 )
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अर्थात् हे पुत्र ! तू शूरवीर है, विद्यावान् है, देखने योग्य (रूपवान् )
है, परन्तु जिस कुल में तू पैदा हुआ है उस कुल में हाथी नहीं मारे जाते ।
(गो. कर्मकाण्ड गाथा - 16 पृ.6)
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