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________________ और शुक्ल-वर्ण। प्रश्न:- स्पर्श, रस आदि गुण अचेतन पदार्थों के है, वे चेतन में कैसे होते उत्तर:- यद्यपि ये स्पर्श आदि पुद्गल के स्वभाव हैं तथापि जीव के शरीर में इनका प्रादुर्भाव कर्मोदय कृत है। इस प्रकार स्पर्शादि नाम कर्म के उदय से शरीर में उस- जाति के रूप, रस, आदि होते हैं। अर्थात् गुरु स्पर्श कर्म के उदय से शरीर भारी होता है, लघु नाम कर्म के उदय से शरीर हलका होता है। इस प्रकार सर्व स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण में लगाना चाहिये। 14. आनुपूर्वी नामकर्म:- जिस नाम कर्म के उदय से विग्रह गति में पूर्व शरीर का आकार बना रहता है, नष्ट नहीं होता है, वह आनुपूर्वी नाम कर्म है। वह आनुपूर्वी चार प्रकार की है- नरक गत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, मनुष्य गत्यानुपूर्वी और देव गत्यानुपूर्वी (1) नरक गति आनुपूर्वी:- जिस समय मनुष्य वा तिर्यञ्च अपनी आयु को पूर्ण करके पूर्व शरीर को छोड़कर नरकगति के अभिमुख होता है उस समय विग्रह गति में उदय तो नरक गत्यानुपूर्वी का होता है, परन्तु उस समय आत्मा का आकार पूर्व शरीर के अनुसार मनुष्य वा तिर्यञ्च का बना रहता है, यह नरकगति आनुपूर्वी है। (2) मनुष्यगत्यानुपूर्वी:- इस प्रकार मनुष्य गति में जाने वाले के विग्रह गति में मनुष्यगत्यानुपूर्वी है। . (3) तिर्यग्गत्यानुपूर्वी:- तिर्यञ्च में जाने वाले तिर्यग्गत्यानुपूर्वी कहलाती हैं। (4) देवगत्यानुपूर्वी:- देव में जाने वाले के विग्रह गति में देवगत्यानुपूर्वी कहलाती है। प्रश्न:- विग्रहगति में पूर्व शरीर का आकार बना रहता तो निर्माण नाम कर्म का फल है आनुपूर्वी के उदय पूर्व आकार नहीं है। उत्तर:- विग्रहगति में पूर्व शरीर का आकार बने रहना निर्माण नाम कर्म का काम नहीं है, क्योंकि पूर्व शरीर के नष्ट होते ही निर्माण नाम कर्म का उदय समाप्त हो जाता है। उसके नष्ट होने पर आठ कर्मों के पिण्ड कार्मण शरीर और तैजस शरीर से सम्बन्ध रखने वाले आत्मप्रदेशों 497 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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