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9. संहनन नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से अस्थिजाल (हड़ियों के समूह) का बन्धन विशेष होता है वह संहनन नामकर्म है। यह छह प्रकार का है(1) वज्रर्षभनाराच संहनन, (2) वज्रनाराच संहनन (3) नाराच संहनन (4). अर्धनाराच संहनन, (5) कीलका संहनन और (6) असंप्राप्तासृपाटिका संहनन (1) वज्रर्षभनाराच संहनन:- दोनों हड्डियों की सन्धियाँ वज्राकार हों। प्रत्येक हड्डी में वलयबन्धन और नाराच हो, ऐसा सुसंहत बन्धन वज्रर्षभनाराच संहनन
(2) वज्रनाराच संहनन:- सर्व रचना वज्रर्षभ नाराच के समान है, परन्तु बन्धन वलय से रहित है वह वज्रनाराच संहनन हैं। (3) नाराच संहनन:- जो शरीर वज्राकार बन्धन और वलय बन्धन से रहित तथा नाराच सहित है वह नाराच संहनन हैं। (4) अर्धनाराच संहनन:- जो शरीर एक तरफ नाराचयुक्त तथा दूसरी ओर नाराच रहित अवस्था में है, वह अर्धनाराच संहनन वाला शरीर कहलाता है। (5) कीलक संहनन:- जिसके दोनों हड्डियों के छोरों में कील लगी हैं। वह कीलक संहनन है। (6) असंप्राप्तासपाटिका संहनन:- जिसमें भीतर हड्डियों का परस्पर बन्धन हो मात्र बाहर से वे सिरा, स्नायु, मांस आदि लपेट कर संघटित की गई हो वह असंप्राप्तासृपाटिका का संहनन हैं। (10) स्पर्श नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से कठोर-मृद, हलाक-भारी, स्निन्ध-रूक्ष, शीत और उष्ण इन आठ प्रकार के स्पर्श का प्रादुर्भाव होता है, वा जिसके कारण शरीर में कर्कश, मृदु, चिकनापन, रूक्षपना, शीत, उष्णत्व, गुरु, लघुत्व आदि का प्रादुर्भाव होता है, वह स्पर्श नाम कर्म है। (11) रस नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से शरीर में तिक्तत्व, कटुत्व, कषायत्व, अम्लत्व और मधुरत्व, इन पाँच रसों का प्रादुर्भाव होता है वह रस नाम कर्म
(12) गन्ध नामकर्म:- जिसके उदय से शरीर में गन्ध होती है वह गन्ध नाम कर्म है। गन्ध दो प्रकार की है- सुगन्ध और दुर्गन्ध । (13) वर्ण नामकर्म:- जिसके उदय से शरीर में वर्ण विशेष होता हैं वह वर्ण नाम कर्म है। वह वर्ण पाँच प्रकार हैं- कृष्णवर्ण, नीलवर्ण, रक्तवर्ण, हरितवर्ण
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