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________________ कर्म को नष्ट करके वीतरागी, सर्वज्ञ, कृत्कृत्य बनना ही मोक्ष है, और उसके उपाय ही.मोक्षमार्ग है। जो मोक्षमार्ग के लिए एवं मोक्ष के लिए विरोध-कारण स्वरूप घाती कर्म हैं उनको नष्ट करने वाला एवं जीवों के हित का उपदेश देने वाला ही मोक्ष मार्ग का नेता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अन्तराय को नाश करके जब जीव अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त सुख को प्राप्त करके जो वीतरागी और हितोपदेशी बनता है वह ही यथार्थ से मोक्षमार्ग का नेता है। तीर्थंकर प्रकृति सहित ऐसे जीव को तीर्थंकर केवली कहते हैं। उनके समवशरण की रचना होती है वे समवशरण में विराजमान होकर देव-दानव, मानव पशु पक्षियों के लिए भी मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं। इसे ही दिव्य ध्वनि कहते है। यह 18 महाभाषा तथा 700 क्षुद्रभाषा सहित होती है। तीर्थंकर भगवान सम्पूर्ण अंग-उपांग से 718 भाषाओं में या विश्व की सम्पूर्ण भाषा यहाँ तक कि पशु-पक्षियों की भाषा में भी उपदेश देते है। सामान्य केवली के समवशरण की रचना नहीं होती है परन्तु गंधकुटी की रचना होती है और गंधकुटी में रहकर पूर्वोक्त विधि से धर्मोपदेश देते है। दिव्यध्वनि के बारे में कहा भी है: यत्सर्वात्महितं न वर्णसहितं न स्पन्दितोष्ठद्वयं, नो वांछा कलितं न दोषमलिनं नोच्छवासरूद्धक्रम। . शान्तामर्षविषै! समं पशुगणैराकर्णितं कर्णिभिः, तन्नः सर्वविदो विनष्ट विपदः पायादपूर्व वचः॥ . सर्व आपत्तियों से रहित श्री सर्वज्ञ भगवान का वह अपूर्व वचन हमारी रक्षा करे जो सर्व आत्माओं का हितकारी है, अक्षर रूप नहीं है, दोनों ओठों 'के हलन चलन बिना प्रगट होता है, इच्छा रहित होता है, दोषों से मलिन नहीं है, न उसमें श्वासोच्छवास के रूकने का क्रम है, जिसको क्रोध रूपी विष को शान्त किए हुए पशुगण भी अपने कानों से सुन सकते हैं। __ इस मंगलाचरण सूत्र से यह भी ध्वनित होता है कि मुमुक्षु (मोक्ष चाहने वालों) को गुणग्राही होकर गुणियों का आदर सत्कार, विनय करना चाहिए। क्योंकि इससे स्वयं के अन्दर विद्यमान स्वगुण धीरे-धीरे प्रगट होते हैं और एक समय वह आता है कि वह भी उसे प्राप्त कर लेता है। तुलसीदास ने 42 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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