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करके आत्मा उनके समान परमात्मा बन जाती है। जैसे- दीपक से भिन्न बत्ती दीपक की उपासना करके यानी साथ-साथ रहकर दीपक के समान प्रकाशमान बन जाती है।
येन भावेन
तद्रुपं
ध्यायेतमात्मानमात्मवित् । तेन तन्मयता याति सोपधिः स्फटिको यथा ॥
जिस भाव से जिस प्रकार यह आत्मा का ध्यान करता है उस स्वरूप हो जाता है। जैसे - स्फटिक मणि विभिन्न रंगों के सम्पर्क से उस वर्ण रूप
परिणमन करता है।
परिणमते येनात्मा भावेन स तेन तन्मयो भवति । अर्हत्ध्यानविष्टो भवार्हन् स्यात् स्वयं तस्मात् ॥
यह आत्मा जिस भाव से परिणमन करता है वह उस स्वरूप हो जाता है । अर्हत् के ध्यान सहित ध्याता स्वयं अर्हत् रूप हो जाता है।
कुन्दकुन्द देव ने प्रवचनसार में भी प्रकारान्तर से इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। यथा :
जो जाणदि
अरहंतं
दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥ ( 80 )
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अरहन्त भगवान् के द्रव्यपने, गुणपने तथा पर्याय पने को जानता
है वह पुरुष अर्हन्त के ज्ञान के पीछे अपने आत्मा को जानता है। उस आत्मज्ञान प्रताप से उस पुरुष का दर्शनमोह का निश्चय से क्षय हो जाता है।
सव्वे वि य अरहंता तेण विधाणेण खविदकम्मंसा । किच्चा तधोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसिं 11 ( 82 ) सब ही अरहन्त उसी विधि से कर्मांशों का क्षय करके और उसी प्रकार उपदेश को करके वे निर्वाण को प्राप्त हुए उनके लिए नमस्कार हो ।
इस मोक्षशास्त्र के मंगलाचरण में ही मोक्षमार्ग के उपाय मोक्षमार्ग के उपदेशक और मोक्षमार्ग के गुण, मुमुक्षु के कर्तव्य, मोक्ष का स्वरूप आदि का संक्षिप्त सार गर्भित वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण द्रव्यकर्म, भावकर्म, नो
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