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II साशंयिकमिथ्यात्व का लक्षण ___किं वा भवेन्न वा जैनो धर्मोऽहिंसादिलक्षणः।
इति यत्र मतिद्वैधं भवेत्सांशयिकं हि तत्॥(5) 'जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा हुआ अहिंसादि लक्षण धर्म है या नहीं' इस प्रकार की जिसमें बुद्धि का भ्रम रहता है वह सांशयिकमिथ्यात्व है। विपरीतमिथ्यात्व का लक्षण
सग्रन्थोऽपि च निर्ग्रन्थो ग्रासाहारी च केवली।
रूचिरेवंविधा यत्र विपरीतं हि तत्स्मृतम्॥(6) परिग्रह सहित भी गुरू होता है और केवली कवलाहारी होता है इस प्रकार की जिसमें श्रद्धा होती है वह विपरीतमिथ्यात्व है। IV आज्ञानिकमिथ्यात्व का लक्षण
हिताहितविवेकस्य यत्रात्यन्तमदर्शनम्।
यथा , पशुवधो धर्मस्तदाज्ञानिकमुच्यते॥(7) जिसमें हित और अहित के विवेक का अत्यन्त अभाव होता है, जैसे पशुवध धर्म है, वह आज्ञानिकमिथ्यात्व कहा जाता है। vवैनयिकमिथ्यात्व का लक्षण
सर्वेषामपि देवानां समयानां च तथैव च।
यत्र स्यात्समदर्शित्वं ज्ञेयं वैनयिकं हि तत्॥(8) जिसमें सभी देवों और सभी धर्मों को समान देखा जाता है उसे वैनंयिकमिथ्यात्व जानना चाहिए।
- बारह प्रकार का असंयम षड़जीवकायपञ्चाक्षमनोविषयभेदतः।
कथितो द्वादशविधः सर्वविद्भिरसंयमः॥(9) .. छहकाय के जीव तथा पाँच इन्द्रिय और मनसम्बन्धी विषय के भेद से सर्वज्ञ भगवान् ने बारह.प्रकार का असंयम कहा है।
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