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________________ 5 व्रत और 7 शीलों के अतिचारों की व्याख्या व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम्। (24) There are 5 defects respectively in each of the 5 व्रत Vows and 7 शील Supplementary Vows which should be avoided. व्रतों और शीलों में पाँच-पाँच अतिचार हैं जो क्रम से इस प्रकार हैं। अहिंसा आदि पाँच व्रत कहलाते हैं और दिग्विरति, देशव्रत, अनर्थदंड विरत, सामयिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोगपरिणाम और अतिथिसंविभाग ये सात शील कहलाते हैं। उन व्रतों और शीलों के पाँच-पाँच अतिचार होते हैं, व्रत का एकदेश भंग होना अतिचार है। यद्यपि दिग्विरति आदि शील की अभिसन्धि (संकल्प) पूर्वक निवृत्ति होने से व्रत ही है तथापि शील विशेष रूप से व्रतों के परिरक्षण के लिए होते हैं अत: 'शील' शब्द इस विशेष अर्थ का द्योतन करने के लिए है तथा शील के ग्रहण से दिग्विरति आदि का ग्रहण होता है अत: इनका 'पृथक् शील शब्द से निर्देश किया है। सामर्थ्य से इसमें, गृहस्थ के व्रतों का संप्रत्यय (ज्ञान) होता है। यद्यपि इस सूत्र गृहस्थ और मुनि आदि विशेषण नहीं हैं तथापि आगे कहे जाने वाले वध, बन्धन, छेद आदि वचन के सामर्थ्य से ज्ञात होता है कि ये अतिचार गृहस्थों के व्रतों के हैं। अत: आगे अतिचार के सामर्थ्य से यहाँ गृहस्थ के व्रतों का ग्रहण होता है क्योंकि 'बन्धवधच्छेद'----- ये ग्रहस्थों के ही व्रतों के अतिचार हो सकते हैं, अनगार (मुनि) के नहीं। अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार बन्धवधच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः। (25) The partial transgressions of the first vow अहिंसा अणुव्रत are : 1. बन्ध - Tying up. 2. वध - Beating. 3. छेद - Mutilating 4. अतिभारारोपण - Overloading. 445 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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