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________________ ( मंगल स्मरण ) नेतारं, विश्वतत्त्वानां, मोक्षमार्गस्य ज्ञातारं भेत्तारं वन्दे कर्मभूभृताम् । तद्गुणलब्धये ॥ I bow to him who is the guide on the path to liberation, the destroyers of Mountains of Karmas and knower of the principles of the universe, so that I may attain these qualities belonging to him. जो मोक्ष मार्ग के नेता हैं, कर्मरूपी पर्वतों के भेदने वाले हैं, और विश्वतत्त्व ज्ञाता हैं, उनकी मैं उनके समान गुणों की प्राप्ति के लिए सदा वंदना करता हूँ। मोक्ष शास्त्र (तत्त्वार्थ सूत्र, स्वतंत्रता के सूत्र ) के आदि में मंगलाचरण के रूप में मोक्षमार्ग के नेता (स्वतंत्रता के हितोपदेशक) स्वतंत्रता के भोक्ता (स्वामी) एवं विश्व के समस्त तत्त्व के ज्ञाता (सर्वज्ञ) को उनकी गुणों की उपलब्धि के लिए नमस्कार ( नमन ) किया गया है। महान् आदर्श पुरुषों को नमस्कार करना गुणग्राही महान् आदर्श परंपरा है । इसे ही मंगलाचरण कहते हैं। मंगलाचरण का अर्थ - "मलं पापं गालयति विध्वंसयतीति मंगलं", अथवा “मंगं पुण्यं सुखं तल्लाति आदत्ते गृह्णाति वा मंगलं " । 'में' अर्थात् मल या पाप को जो गालयति अर्थात् गलांवे सो मंगल है अथवा 'मंग' जो पुण्य तथा सुख उसे जो लाति अर्थात् देवे सो मंगल है | 1. मंगलाचरण स्वरूप से महान् आत्मा का गुणगान करना, नमन करना, कोई अंध परंपरा नहीं, एक सभ्य परम्परा है। क्योंकि Jain Education International नास्तिक्य परिहारस्तु शिष्टाचार प्रपालनम् । पुण्यावाप्तिश्च निर्विघ्नं शास्त्रादौ तेन संस्तुति ॥ नास्तिकपने के त्याग के लिए अर्थात् ग्रन्थकर्ता आस्तिक्य है यह बताने के लिए, शिष्टाचार जो परम्परा से चला आया विनय का नियम उसको पालने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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