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________________ 602 609 611 . 612 24. रौद्रध्यान के भेद व स्वामी 25. धर्मध्यान का स्वरूप व भेद 26. शुक्लध्यान के स्वामी 27. शुक्लध्यान के 4 भेदों के नाम 28. शुक्लध्यान के आलम्बन 29. आदि के दो ध्यानों की विशेषता 30. वितर्क का लक्षण 31. वीचार का लक्षण 32. निर्ग्रन्थ साधुओं के भेद 33. पुलाकादि मुनियों में विशेषता 34. पात्र की अपेक्षा निर्जरा में न्यूनाधिकता का वर्णन ' अध्याय 10. 614 615 616 616 622 624 625 पृ.सं. 1. मोक्ष तत्व का वर्णन 2. मोक्ष के कारण और लक्षण 3. कर्मों का क्षय होने के बाद 4. मुक्त जीव के उर्ध्वगमन के कारण 5. उक्त चारों के कारणों के क्रम से चार दृष्टान्त 6. लोकाग्र के आगे नहीं जाने में कारण 7. मुक्त जीवों में भेद होने के कारण 632 643 646 647 649 650 व्यवहार में, आचार में अहिंसा का स्वरूप- दया-परिपालन, जीव रक्षण, परधन-सम्पत्ति का अनाधिकार अपहरण नहीं करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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