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________________ अध्याय 6 आस्रवतत्त्व का वर्णन Influx of KARMA कायवाङ्मनः कर्मयोगः । ( 1 ) Yoga is the name of vibrations set in the soul by the activity of body,speech or mind. काय, वचन और मन की क्रिया योग है। इस शास्त्र का नाम मोक्ष शास्त्र है क्योंकि इसमें मोक्षमार्ग का वर्णन है; मोक्ष मार्ग के कारण भूत सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान, सम्यक्चारित्र का वर्णन किया गया है। सम्यग्दर्शन के विषय भूत सप्ततत्त्व में से पंचम अध्याय तक जीव एवं अजीव तत्त्व का वर्णन सम्पूर्ण हुआ । क्रम प्राप्त आस्रव तत्त्व का वर्णन यहाँ से प्रारम्भ हो रहा है। इस विश्व में कार्माण वर्गणा ठसाठस भरी हुई है। उसमें कर्मरूप परिणमन करने की योग्यता भी है । परन्तु जब तक जीव के योग एवं उपयोग का निमित्त नहीं मिलता है तब तक कर्म वर्गणा आकर्षित होकर जीव में आकर नहीं मिलती है। इसलिये आस्रव तत्त्व का वर्णन करने के पहले ही योग का वर्णन किया गया है क्योंकि योग से आम्रव होता है। काय, वचन और मन की क्रिया को योग कहते हैं। इस क्रिया से आत्मा के प्रदेशों का परिस्पन्दन हलन चलन ही योग है। वह निमित्तों के भेद से तीन प्रकार का है- काययोग, वचनयोग और मनोयोग । (1) काययोग : - वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम के होने पर औदारिक आदि सात प्रकार की कायवर्गणाओं में से किसी एक प्रकार की वर्गणाओं के आवलम्बन से होने वाला आत्मप्रदेश परिस्पन्द काययोग कहलाता है। (2) वचनयोगः- शरीर नामकर्म के उदय से प्राप्त हुई वचन वर्गणाओं का आवलम्बन होने पर तथा वीर्यान्तराय और मत्यक्षरादि आवरण के क्षयोपशम से प्राप्त हुई भीतरी वचनलब्धि के मिलने पर वचनरूप पर्याय के सन्मुख हुए आत्मा के होने वाला प्रदेश परिस्पन्द वचनयोग कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only 353 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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