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________________ पर्याय ही उत्पाद और व्यय के करने वाले हैं . न च नाशोऽस्ति भावस्य न चाभावस्य सम्भवः । भावाः कुर्यय॑योत्पादौ पर्यायेषु गुणेषु च॥(13) सत् का नाश और असत् की उत्पत्ति नहीं होती, इसलिये पर्याय ही पर्यायों और गुणों में व्यय और उत्पाद को करते हैं। द्रव्यदृष्टि से किसी पदार्थ का न नाश होता है और न किसी पदार्थ की उत्पत्ति होती है, सिर्फ पर्याय ही नष्ट होती तथा उत्पन्न होती है, इस तरह उत्पाद और व्यय का कर्ता पर्याय ही है। काल भी द्रव्य हैं कालश्च। (39) Time is also a substance. काल भी द्रव्य हैं। जिस प्रकार जीव धर्म, अधर्म एवं आकाश द्रव्य हैं, उसी प्रकार काल भी द्रव्य है। क्योंकि जैसे जीवादि में गुण एवं पर्याय तथा उत्पादव्यय ध्रौव्य होते हैं उसी प्रकार काल में भी गुण एवं पर्याय तथा उत्पादव्यय ध्रौव्य होते हैं। मुख्यतः काल के दो भेद हैं (1) निश्चयकाल (2) व्यवहार काल। '. प्रत्येक लोकाकाश के एक-एक प्रदेश में एक-एक अमूर्तिक कालाणु स्थित है उसे निश्चयकाल कहते हैं। समय, घड़ी, घंटा, दिवस, ऋतु तथा भूत, वर्तमान, भविष्यत् को भी व्यवहार काल कहते हैं। व्यवहार काल को अन्य दार्शनिक मानते हैं परन्तु निश्चयकाल का वर्णन जिस वैज्ञानिक एवं तार्किक प्रणाली से जैन धर्म में पाया जाता है वैसा वर्णन अन्य दर्शन में नहीं पाया जाता है। भले आधुनिक विज्ञान में 'चतुः आयामसिद्धान्त' में काल को स्वीकार किया है। जैन धर्म में जो काल का अद्वितीय वर्णन है उसका कुछ प्रस्तुतिकरण नीचे कर रहा हूँ 341 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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